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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सिन्धसे डा० चौइथरामने कुछ बातें लिख भेजी है। इन तथ्योंको वे एक ऐसे मामलेसे सम्बन्धित बताते हैं जिसमें एक हिन्दूको जबरदस्ती मुसलमान बनानेकी कोशिश की गई। कहते हैं, उस आदमीको उसके मुसलमान साथियोंने मार डाला, क्योंकि वह इस्लाम कबूल करनेको तैयार नहीं था। यदि यह सच हो तो यह बहुत ही भयंकर बात है। मैंने मामलेके सम्बन्ध में जानकारी भेजने के लिए सीधे सेठ हाजी अब्दुल्ला हारूँको तार किया। जवाबमें उन्होंने तत्काल तार द्वारा सूचित किया कि लोग इसे आत्महत्याका मामला बताते हैं, लेकिन मैं आगे जाँच-पड़ताल कर रहा हूँ। आशा है, सचाई सामने आ जायेगी। इस मामलेका जिक्र मैने सिर्फ यह बतानेके लिए कर दिया कि सन्देहके ऐसे वातावरणमें काम करना कितना कठिन है। सिन्धके एक और मामले के बारेमें मालूम हुआ है, लेकिन जबतक उसके सम्बन्ध में पूरी और प्रामाणिक बातें मालूम नहीं हो जाती, मैं उसका विवरण नहीं देना चाहता। मेरा इतना ही निवेदन है कि यदि कोई ऐसी घटनाओंके बारे में सुने, फिर चाहे वह हिन्दुओंके विरुद्ध हो या मुसलमानोंके, तो उसे चाहिए कि वह अपना मन शान्त रखे और सिर्फ ऐसे तथ्य मेरे पास भेजे जिन्हें साबित किया जा सकता हो। मैं वचन देता हूँ कि मैं मामूलीसे-मामूली मामले की भी जाँच करूँगा और एक व्यक्ति जितना कर सकता है, उतना सब करूँगा। आशा है, जल्दी ही हमारे पास ऐसे कार्यकर्ताओंकी पूरी एक टुकड़ी तैयार हो जायेगी, जिनका काम यही होगा कि ऐसी सभी शिकायतोंकी जाँच करें और न्याय कराने तथा भविष्य में ऐसे झगड़े न हों, इसके लिए आवश्यक व्यवस्था करें।

बंगालकी खबरें

बंगालसे खबरें आ रही है कि यहाँ हिन्दू स्त्रियोंपर ज्यादती हो रही है। वे अगर थोड़ी भी सच हों तो भी बहुत ही अधिक क्षोभजनक है। यह जानना कठिन है कि इस समय ऐसे अपराधोंका विस्फोट-सा क्यों हुआ है। उसी तरह उन हिन्दुओंको बुजदिलीके सम्बन्धमें भी संयमित भावसे कुछ कह सकना कठिन है, जो उन भ्रष्ट की गई बहनोंके नाते-रिश्तेदार और संरक्षक है। कामान्ध होकर बेकसूर स्त्रियोंपर हैवानकी तरह ज्यादती करनेवालोंकी पशुताके सम्बन्धमें तो क्या कहें? इन बदमाशोंको खोज निकालना स्थानीय मुसलमानों और आम तौरपर बंगालके सभी प्रमुख मुसलमानोंका कर्तव्य है। उनकी खोज सजा दिलानेके लिए ही नहीं, बल्कि ऐसे अपराधोंकी पुनरावृत्ति रोकनेके लिए जरूरी है। बदमाशोंको वे जहाँ छिपे हैं वहाँसे खोजकर पुलिसके सुपुर्द कर देना कोई बड़ी बात नहीं है। परन्तु इससे समाजमें ऐसे अपराधोंका होना बन्द नहीं हो जाता। इसके लिए कारणोंका हटाया जाना जरूरी है और उनका हटाया जाना सर्वांगपूर्ण सुधारोंसे ही सम्भव है। हिन्दू और मुसलमान, दोनों समाजोंमें कुछ ऐसे लोगोंको आगे आना चाहिए जो स्वयं अपेक्षाकृत खरे चरित्रके हों और ऐसे अपराधियोंके बीच जाकर काम करें। यही बात काबुलियों और पठानोंके जुल्मके[१] बारेमें कही जा सकती है। हिन्दू-मुस्लिम सवालसे काबुलियोंके जुल्मका कोई

  1. देखिए खण्ड २०, पृष्ठ १५४-५७।