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कांग्रेस-संगठन

मतलब “अहिंसापूर्ण” है और “उचित” का मतलब “सत्य” है और मैं जानता हूँ कि आज हममें फरवरी, १९२२ की अपेक्षा हिंसा और असत्यकी भावना कहीं अधिक है। इसलिए, मैं अनुरोध करता हूँ कि जो लोग पंचमुखी बहिष्कार तथा सत्य और अहिंसामें विश्वास नहीं रखते उन्हें कार्यकारिणी संस्थाओंको छोड़ देना चाहिए। इसीलिए मैंने कौंसिल-प्रवेश सम्बन्धी अपने वक्तव्यमें कहा है कि विभिन्न दल रचनात्मक कार्यक्रमको अपने-अपने संगठनोंके जरिये ही पूरा करें। यदि पंचमुखी बहिष्कार तथा सत्य और अहिंसामें पूर्ण विश्वास रखनेवाले लोग हों तो उनके लिए तो कांग्रेसके अलावा और कोई संगठन ही नहीं है। इसलिए मेरे विचारसे स्वराज्य-वादियोंके लिए सबसे स्वाभाविक रास्ता यही है कि वे अपने ही संगठनोंके जरिये रचनात्मक कार्यक्रमको पूरा करें। जहाँतक मैं देख पाता हूँ, उनके कामका तरीका बहिष्कारवादियोंके तरीकेसे भिन्न होगा। यदि वे कौंसिल-प्रवेशको सफल बनाना चाहते हैं तो उन्हें अपनी सारी शक्तिका उपयोग उसी काममें करना चाहिए और इसलिए उनके लिए रचनात्मक कार्यक्रममें सहायता देनेका भी तरीका यही है कि वे कौंसिलों और विधानसभाके जरिये उसे पूरा करनेकी कोशिश करें।

व्यक्तिश: मैं तो ऐसी किसी रस्साकशीमें शरीक नहीं होऊँगा जिसमें प्रत्येक पक्ष कांग्रेस कार्यकारिणीपर अपना-अपना आधिपत्य जमाना चाहता हो। अगर जरूरी ही हो तो वह संघर्ष आगामी दिसम्बरके कांग्रेस अधिवेशनमें बिना किसी गरमागरमी या कटुताके किया जा सकता है। कांग्रेस अधिवेशनका काम विचार-विमर्श करना और नियम बनाना है। लेकिन जो स्थायी संस्थाएँ हैं, वे विशुद्ध रूपसे कार्यकारिणी संस्थाएँ हैं, जिनका काम कांग्रेस अधिवेशन में पास किये गये प्रस्तावोंपर अमल कराना है। मुझे बड़ी उतावली है। कांग्रेस द्वारा स्वीकृत पूर्ण और विशुद्ध अहिंसात्मक असहयोग कार्य-क्रममें मेरा अटल विश्वास है और किसी कार्यक्रममें मेरा विश्वास है ही नहीं। यदि मुझे ऐसे अहिंसावादी और सत्यनिष्ठ कार्यकर्ता मिल जायें, जो मेरी ही तरह बहिष्कारों, खद्दरकी क्षमता, हिन्दू-मुस्लिम एकता और अस्पृश्यता-निवारणमें विश्वास करते हों तो फिर मुझे यही महसूस होने लगेगा कि हममें से अधिकांश लोग जितना सोचते हैं, उससे कहीं अधिक जल्दी ही स्वराज्य आ रहा है। लेकिन, यदि हम अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीमें तू-तू, मैं-मैं करते चले जायें तो एक-दूसरेको बदनाम करने और एक-दूसरेके मार्गमें बाधा डालनेके अलावा और कुछ नहीं कर सकते। यदि दोनों दल बिना किसी द्वेषभावनाके ईमानदारीके साथ अलग-अलग (क्योंकि और कोई रास्ता नहीं है) अपना-अपना काम करते रहें तो वे एक-दूसरेको काफी सहायता पहुँचा सकते हैं।

मुझे यकीन है कि आगामी बैठकमें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके सभी सदस्य शामिल होंगे। यदि हम एक-दूसरेके इरादोंको खराब बताये बिना कार्यकी योजनापर शान्तिपूर्वक विचार कर सकें और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीको समान विचारोंवाले लोगोंकी समिति बना सकें तो आगामी छ: महीनोंमें हम बहुत ज्यादा काम कर सकते हैं। मैं हर पुरुष और स्त्री सदस्यसे सादर अनुरोध करूँगा कि वे खुद इस कार्यक्रमके सम्बन्धमें अपने मनको टटोलें। अगर इस कार्यक्रमके वर्तमान रूपमें उनका विश्वास न हो और वे मानते हों कि सिर्फ इसीके भरोसे स्वराज्य
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