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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मुझे पसन्द आयेगा, मैंने तो मीठा विनोद ही किया था पर आपने गुजरातीमें एक अति सुन्दर पत्र ही लिख भेजा। उसे ‘नवजीवन' के पाठकोंके सामने प्रस्तुत न करूँ, यह कैसे हो सकता है? आप ‘नवजीवन’ किसी दूसरेसे पढ़वाकर सुनते रहें।

अमीनाके[१] विवाहके निमन्त्रणपत्रोंपर पते कई लोगोंसे लिखवाये थे। मैंने आपका नाम भी सूचीमें डाला था; परन्तु बादमें काट दिया। आपको निमन्त्रणपत्र भेजनेका अर्थ यही होता कि कुछ रुपया आपसे भी लेना है। मैने कुछ निमन्त्रणपत्र अपने गुजराती हिन्दू मित्रोंके नाम यह दिखानेके लिए अवश्य भेजे हैं कि एक मुसलमानकी पुत्री मेरी ही पुत्री है। परन्तु उन लोगोंके विवाहमें सम्मिलित होनेकी मुझे आशा नहीं है। वे अगर रुपया भेजेंगे तो वह लिया हरगिज नहीं जायेगा। मैने जो थोड़ा-सा पैसा इस सम्बन्धमें खर्च किया है वह इसलिए किया है कि मुझे अपनी मुसलमान बेटी अमीनाका पाणिग्रहण-संस्कार स्वयं अपने हाथों कराना है और इमाम साहबकी ख्वाहिश भी यही है। अगर मुझे किसी हिन्दू लड़कीका विवाह-संस्कार करना हो तो मैं एक कौड़ी भी खर्च न करूं। मैंने आपको निमन्त्रणपत्र केवल यह देखनेके लिए भेजा है कि वह कैसा है।

श्रीमती अब्बास, रेहाना और आपके कुटुम्बके अन्य लोग मुझसे मिलने प्रायः आते हैं।

यदि मेरी लिखाचट आपसे पढ़ते न बने अथवा आपको गुजराती लिखनेमें अड़चन हो तो आप अपना पत्र अंग्रेजीमें ही लिखें और मुझे भी उत्तर अंग्रेजीमें देने के लिए कहें।

मैं मीठे फल देनेवाले पेड़को जड़ समेत नहीं खा जाना चाहता।

आपका भाई,
मोहनदास गांधी


[पुनश्च:]

मैं आपके पत्रकी बात इमाम साहबसे कहूँगा। आप रुपये कदापि न भेजें।

मूल गुजराती पत्र (एस० एन० ९५४६) की फोटो-नकलसे।

 
  1. इमाम बावजोरकी बेटी, जिसका विवाह ३१ मई, १९२४ को हुआ था।