पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/१९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

८१. भेंट: ‘स्वातन्त्र्य' के प्रतिनिधिसे[१]

[साबरमती
३० मई, १९२४]

प्र०: महात्माजी, ‘यंग इंडिया’ में प्रकाशित अपने एक लेखमें आपने डा० महमूदका वक्तव्य दिया है। वक्तव्यमें कहा गया है कि ऐसा एक भी मामला सिद्ध नहीं हो पाया है, जिसमें मोपलोंने जोर-जबर्दस्तीसे हिन्दुओंका धर्म-परिवर्तन किया हो, जैसा कि हिन्दुओं द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यसे बिलकुल स्पष्ट देखा जा सकता है। क्या आप इस वक्तव्यसे सहमत हैं?

उ०: मैं चाहता हूँ कि आप मेरा लेख थोड़ी और सावधानीसे पढ़ते। मैंने सिर्फ डा० महमूदका विचार उसमें दिया है, अपना नहीं।

इसीलिए मैं पूछ रहा हूँ कि आपको अपनी क्या राय है। आपने जब डा० महमूदका विचार प्रकाशित करना ठीक समझा तो साथ ही सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसाइटीके डा० मुंजे और श्री देवधरके विचारोंको भी उसमें स्थान क्यों नहीं दिया?

मुझे नहीं मालूम, डा० मुंजेने मलाबारके बारेमें क्या लिखा है। डा० महमूदने खुद मुझे यकीन दिलाया था कि मलाबारके हिन्दुओंने उनके विचारकी पुष्टि की है। लेकिन मेरे लेखमें आपको सिर्फ यही एक बड़ी कमी क्यों दिखाई पड़ी? मैंने उसमें यह भी तो कहा था कि स्वभावसे ही हर मुसलमान आवारा है और मौलाना बारी साहब कभी बहुत ही खतरनाक दोस्त भी साबित हो सकते हैं। इससे जनतामें निश्चय ही एक सनसनी फैल जायेगी। आर्य समाजके बारे में भी स्थिति ऐसी ही है। मैं तीन बार ‘सत्यार्थ प्रकाश’ पढ़ चुका हूँ पर मुझे उससे घोर निराशा हुई है।

महात्माजी, मुझे आपसे और भी विषयोंपर बातें करनी है। अब वे किसी और अवसरपर करूँगा।[२]

बेशक, मैं चाहता हूँ कि जो भी बात आपके मनको बेचैन किये हो उसे आप निस्संकोच जैसीकी तैसी व्यक्त कर दें। मैं तो जो भी उचित लगेगा, लिखूँगा ही। आप प्रान्तीय स्वायत्त स्वशासनकी मंजूरीकी बाट बेसब्रीसे जोह रहे हैं। लेकिन मैं उससे अधिक चाहता हूँ, यदि मैं हिन्दू-मुस्लिम एकताके इस सवालको लेकर भारत-भरका छ: महीने तक दौरा करूँ तो सरकार अपना यह उपेक्षाका रुख बदल देगी और घबरा उठेगी।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, १२-६-१९२४
  1. नागपुरके हिन्दो दैनिक स्वातन्त्र्यका एक प्रतिनिधि ३० मई तथा ३ जूनको गांधीजीसे साबरमती आश्रममें मिला था। इस भेंटकी हिन्दी रिपोर्ट उपलब्ध नहीं है।
  2. देखिए “भेट : ‘स्वातन्त्र्य’ के प्रतिनिधिसे", ३-६-१९२४।