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८२. पत्र: महादेव देसाईको

[३१ मई, १९२४][१]

तुम्हारा पत्र मिला। आशा है अब तुम्हारी बहनको आराम हो गया होगा। मैंने ‘ब्रह्मचर्य’के[२] अनुवादको गाड़ीमें ही सुधार लिया था। इसमें गलती तो एक भी नहीं थी; कहीं-कहीं कुछ बदला है। इसे प्रकाशित करनेका विचार है। वीसनगर सम्बन्धी लेख अभी मेरे पास ही है। मैं उसमें संशोधन करना चाहता हूँ। क्या मुझे जगानेमें कोई दिक्कत आई थी।[३] यहाँ मुझे ठीक शान्ति प्राप्त है। मैं एक बजे तक तो मौन ही रखता हूँ इसलिए काम भी बहुत-सा निबटा लेता हूँ। ‘नवजीवन’ का जो अगला अंक निकालना है, मैंने उसकी सामग्री अभी छुई भी नहीं है। मै प्रातः ६ बजेसे ७ बजे तक मौन रखता हूँ।

नरहरि कल यहाँ आ गये।

बापूके आशीर्वाद


[पुनश्चः]
शनिवार

अभी-अभी तुम्हारा दूसरा पत्र मिला। यदि बच्चूको परमैंगनेटके पानीसे नहलाया जाये तो वह सम्भवतः अब भी बच सकती है। इस स्नानसे शीतला शान्त हो जाती है, इसमें सन्देह नहीं। लेकिन तुम्हारे जानेके बाद तुम्हारे विचारोंके सम्बन्धमें...[४]
भाई श्री महादेव देसाई
मार्फत, स्टेशन मास्टर, बलसाड

मूल गुजराती पत्र (एस० एन० ८८४४) को फोटो-नकलसे।:

  1. डाक खानेकी मुहरके अनुसार।
  2. देखिए पृष्ठ १२१-२४।
  3. गांधीजी २८ मईको बम्बईसे अहमदाबाद जा रहे थे। जान पड़ता है तब महादेव भाई बलसाडपर उनसे मिलने गये होंगे।
  4. यहाँ वाक्य अधूरा है।