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वीसनगरके हिन्दू और मुसलमान

आया था। इसे भी मैंने अनिच्छाके कारण प्रकाशित नहीं किया। तथापि यह सोचकर कि मुझसे जाने-अनजाने अन्याय होनेकी शंका भी लोगोंके मनमें न आये, मैंने उस पत्रको प्रकाशित करना ठीक समझा। इस बीच मेरे पास आये हुए कुछ पत्रोंसे तथा उनमें उक्त पत्रके कुछ मुद्दोंका जवाब देखकर मुझे मालूम हुआ कि महासुखभाईका पत्र अन्य समाचारपत्रोंमें प्रकाशित हो चुका है और अब उनके प्रति न्यायकी दृष्टिसे भी उसे छापना आवश्यक नहीं रहा।

जिस पत्र-लेखकने मुझे खबर दी है उसके प्रति न्याय करनेकी भावनासे मैं इतना तो कह दूँ कि “गाय-बैल" के बजाय “पशु” शब्दका प्रयोग तो मैंने ही किया है। पत्र-लेखकने तो “गाय-बैल" शब्द ही लिखे थे। सम्भव है इसमें अतिशयोक्ति हो, इस आशंकासे मैंने विशेष शब्दको छोड़कर सामान्य शब्दका प्रयोग किया था। दलीलके खयालसे विशेष शब्दकी जरूरत न थी।

मेरे पास अन्य कुछ पत्र आये हैं जिनसे प्रकट होता है कि मुसलमान भाइयोंसे श्री महासुखभाईके सम्बन्ध अच्छे हैं। हम सब आशा करते हैं कि वे इन सम्बन्धोंका सदुपयोग करके दोनों कौमोंको एक दिल करेंगे तथा वीसनगरमें दोनोंके बीचकी कड़वाहटको मिटायेंगे। ‘सफेद टोपी’ पहननेवाले लोगोंके अपने बचावमें लिखे गये पत्र भी मेरे सामने हैं और उनपर किये गये आक्षेपोंसे भरे हुए पत्र भी। ‘सफेद टोपी’ पहननेवाले लोगोंको अथवा जिन्होंने कोई अयोग्य काम नहीं किया है उनको अपना बचाव करनेकी जरूरत ही नहीं है। व्यक्तिके काम ही उसे बचाते हैं। जिसकी करनीमें दोष नहीं होता वही आक्षेपोंको सहन करता है, क्योंकि उसे विश्वास होता है कि सुकर्मके तेजको आरोपके बादल ज्यादा देरतक ढककर नहीं रख सकते। अतः यदि ‘सफेद टोपी’ पहननेवाले लोगोंने कोई अनुचित कार्य नहीं किया है तो वे निर्भय रहें और यदि उनसे कोई अनुचित काम बन पड़ा है तो उन्हें उसको शुद्ध हृदयसे स्वीकार कर लेना चाहिए तथा फिर कभी ऐसा काम न करना चाहिए। यही उनका पश्चात्ताप होगा। ‘सफेद टोपी’ पहननेवाले सभी लोग अच्छे होते हैं ऐसा तो मैंने कभी नहीं माना। फिर अभी लोगोंके दिलोंमें खादीके प्रति प्रेम-भाव दृढ़ नहीं हुआ है। लेकिन जब सर्वत्र खादीका प्रयोग होने लगेगा तथा मिलोंके कपड़े शायद ही दिखाई देंगे तब तो साह और चोर दोनों ही सफेद टोपीधारी होंगे। खाना-पीना और कपड़ा पहनना तो साधु और असाधु दोनोंके सामान्य कर्म हैं। इसलिए यह वांछनीय है कि सफेद टोपी पहननेवाले तथा समाजके अन्य लोग यह समझना बन्द कर दें कि ‘सफेद टोपी’ सद्गुणोंके एकाधिकारकी सूचक है।

हिन्दुओं और मुसलमानोंके सम्बन्धमें ‘यंग इंडिया’ में मैंने जो लेख लिखा था उसका अनुवाद ‘नवजीवन’ में प्रकाशित हो चुका है।[१] एकताके इच्छुक प्रत्येक हिन्दू और मुसलमानसे मेरी प्रार्थना है कि वे इस लेखको ध्यानपूर्वक पढ़ जायें। ऊपर मैंने जिन पत्रोंका उल्लेख किया है उनमें से एक पत्र एक मुसलमान भाईका भी है। सम्भवतः उन्होंने भी वह लेख समस्त पत्रोंमें प्रकाशित करवानेके इरादेसे ही लिखा है।:

  1. देखिए खण्ड २३, पृष्ठ ५६१-६५।