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टिप्पणियाँ

हम इस शरीररूपी यन्त्रमें उत्पन्न-भापको संचित कर रखें तथा अवसर आनेपर प्रयुक्त करें तो हम अपने उचित भारको गतिके साथ वहन कर सकते हैं। यदि हम अपनी शक्तिके अनुसार तनिक भी आलस्य अथवा चोरी किये बिना काम करते रहें तो जनकने जिस तरह कहा था कि ‘मिथिला नगरी आगमें जल जाये अथवा बच जाये इसका जनकपर क्या प्रभाव पड़ता है’, उसी तरह हम भी कह सकते हैं। यदि गुजरातका प्रत्येक मजदूर या कार्यकर्ता अपने-अपने क्षेत्रमें रहकर एकाग्र मनसे अपना-अपना काम करें तो फिर स्वराज्य आया ही समझना चाहिए। तब मामा, अण्णा,काका अथवा इन-जैसे अन्य बूढ़े या जवान सम्बन्धी उनपर आक्षेप नहीं कर सकते तथा जो बहन अथवा भाई अपने बचे हुए समयमें चरखा ही चलायेंगे, एकसार――मोटा-पतला नहीं――और बलदार सूत तैयार करेंगे उन्हें लक्ष्मीदास[१] भी कुछ नहीं कहेंगे, इतना ही नहीं, अपितु नमस्कार करेंगे। सूत तो हिन्दुस्तानकी जीवन-डोरी है। “हरिने मुझे कच्चे धागेसे बाँध लिया है। वे जिधर खींचते हैं, मैं उधर ही खिच जाती हूँ।[२] मीराबाई इस धागेको अच्छी तरह जानती थी क्योंकि उसके मनमें उत्साह था। यदि मीराबाई कुशल कातनेवाली न होती तो हरिजीके प्रेमपाशकी धागेसे सुन्दर उपमा कैसे देती? भारत-माता भी हमें वैसे ही धागेसे बाँधकर गुलामीके बन्धनोंसे मुक्त करना चाहती है।

मिलकी खादी

गुरुवारको बहुतसे भाई और बच्चे मुझसे मिलने आये थे। मैंने उनके शरीरोंपर मिलके वस्त्र देखे। मैंने उनसे अपने स्वभावानुसार विनोद किया तथा पूछा कि वे खादी क्यों नहीं पहनते? उन्होंने मुझे इसका यह उत्तर दिया, “हम तो खादी ही पहने हुए हैं।" मैं शर्मिन्दा हो गया। मैंने उसे जरा और गौरसे देखा। मेरी शंका और भी दृढ़ हो गई। बादमें मैंने हाथसे कपड़ेको जाँच की और कहा “यह खादी नहीं है।" मुझे इसका उत्तर मिला, “लेकिन भाई साहब! यह तो मिलकी खादी है।” मैं सावधान हुआ। खादी प्रचारमें जो मुश्किलें हैं, मैं उन्हें अच्छी तरह समझ गया तथा मैंने इन भाइयोंसे कहा, खादीका अर्थ है हाथ-कते सूतका, हाथसे बुना कपड़ा। तात्पर्य यह है कि “मिलकी खादी” नामकी तो कोई चीज हो ही नहीं सकती। इन भाइयोंने अपने अज्ञानको स्वीकार किया और प्रतिज्ञा की कि वे आगेसे हाथ-कते सूतका हाथ-बुना कपड़ा अर्थात् खद्दर ही पहनेंगे।

उसी दिन कुछ पंजाबी भाई मिलने आये। उनके पास मैने “जीन" का थान देखा। मैंने पूछा, यह क्या है? उन्होंने थान मेरे आगे रख दिया। मैंने उसपर “स्वदेशी छाप” आसमानी रंगमें छाप देखी। ज्यादा पूछताछ करनेपर मुझे मालूम हुआ कि खादीके नामसे ऐसा कपड़ा बहुत बेचा जा रहा है। इस तरहकी धोखाधड़ीका मुकाबला कैसे किया जाये, यह एक बड़ा प्रश्न है। इसपर इस समय विचार नहीं किया जा:

  1. लक्ष्मीदास भासर, गांधीजीके एक अनुयाथी।
  2. “कांचे तांतणे मने हरीजीए बाँधी;
जेम ताणे तेम तेमनी रे"