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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं स्वयं राजनीतिज्ञोंके वर्गमें पैदा हुआ हूँ; लेकिन मैं अपनेको वाचाल नहीं मानता। इसलिए सबसे पहले तो मैं ही अपनी आलोचनाका अपवाद हूँ। फिर मेरे साथियोंमें कितने ही ऐसे काठियावाड़ी हैं जो चुपचाप काम करते रहना ही जानते हैं। मेरा यह विशेषण उनपर भी लागू नहीं होता, इसलिए उसका व्यवहार तो केवल उन्हीं लोगोंके सम्बन्धमें किया गया है जिनपर वह लागू हो सकता है।

यह बात सच है कि यदि बातूनी लोग केवल अपवाद-रूप ही होते तो मेरी टीका अन्यायपूर्ण मानी जाती। मेरी इतनी शिकायत जरूर है कि प्रायः राजनीतिज्ञ वाचाल और झगड़ालू प्रवृत्तिके हैं। चुपचाप रहकर काम करनेवाले लोग अपवाद रूप ही है। मैं राजनीतिज्ञोंके परिवारमें पला-पुसा और बड़ा हुआ हूँ; मुझे इसका विपुल अनुभव है। मैं अपने पिताजीकी तो पूजा किया करता था। माता-पिताके प्रति मेरी भक्ति श्रवण-जैसी थी। यदि इसमें अतिशयोक्ति हो तो भी इस बातमें कोई सन्देह नहीं कि मेरा आदर्श श्रवण था। लेकिन मुझमें विवेकका लोप कभी नहीं हुआ। इसीसे मैं तब भी जानता था एवं अब तो और भी ज्यादा जानता हूँ कि मेरे पिताजीका अधिकांश समय केवल गुप्त योजनाओंमें ही जाता था। सबेरेसे ही बातें होने लगतीं और वे कचहरी जानेतक चलतीं। सभी लोग कानाफूसी करते रहते थे। बातोंका सार केवल इतना ही होता था कि बनिये किस तरह नीचे पदोंसे ऊँचे पदोंपर पहुँचें तथा नागरों और ब्राह्मणोंकी तुलनामें उनका प्रभाव किस तरह बढ़े। मेरे पिताका उद्देश्य यह था कि बनियोंमें भी किसी तरह हमारा परिवार सबसे आगे हो जाये। मैंने आपके सामने यह एक पहलू रखा है। यह सब कहनेका अभिप्राय यह नहीं है कि इसमें परहितकी भावना तनिक भी नहीं थी; लेकिन उसका स्थान गौण था। वे मानते थे कि परहित उसी हदतक करना चाहिए जिस हदतक वह स्वार्थकी पूर्ति करते हुए किया जा सके। मेरे पिता राजनीतिज्ञोंमें निकृष्टतम नहीं थे, बल्कि वे उत्कृष्टतम राजनीतिज्ञ माने जाते थे। ईमानदारीके लिए वे विख्यात थे। उस समय भी घूस देने और लेनेका चलन था; लेकिन वे इससे सर्वथा मुक्त थे। उनका हृदय विशाल था। उनकी उदारताकी कोई सीमा न थी। ऐसा अच्छा मनुष्य भी राजनीतिके विषाक्त वातावरणके प्रभावसे मुक्त नहीं रह सका था।

मेरा यह ज्ञान अनेक बार मुझे यह कहने के लिए प्रेरित करता है कि मैं नागरों और अन्य लोगोंके साथ शुद्धतम मैत्रीभाव रखकर अपने परिवारके इस पक्षपातपूर्ण रवैयेका प्रायश्चित्त कर रहा हूँ। मैं उस वर्गमें पलने और बड़ा होनेके बावजूद वाचालतासे निकलकर कर्मनिष्ठतामें प्रवेश करके राजनीतिज्ञोंके इस पापका परिमार्जन कर रहा हूँ।

राजनीतिज्ञोंके वर्गके सम्बन्धमें जो बात चालीस-पचास वर्ष पहले सच थी वही आज भी सच है। राजनीतिज्ञोंका धन्धा ही तिकड़म करते रहना है। इनके प्रति अरुचि ही मेरे देश-त्यागका एक कारण था। राजनीतिज्ञोंके वातावरणमें रहकर और मौन धारण करके केवल काम करते रहनेका अर्थ है, क्लर्कोकी पंक्तिसे आगे न बढ़ना। प्रत्येक क्लर्कका उद्देश्य पदोन्नति रहता था तथापि यह पदोन्नति अच्छे कार्यका परिणाम नहीं