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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

झूठा सिद्ध करें। मुझे आलोचना करनेमें सुख नहीं मिलता। मैं आलोचनाके द्वारा काठियावाड़से पूरा काम लेने की उम्मीद करता हूँ।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १-६-१९२४

८७. मुझे क्षमा करें

मैं गुरुवारको[१] सुबह अहमदाबाद स्टेशनपर उतरूँगा, इस आशासे अहमदाबादके बहुतसे भाई और बहन स्टेशनपर एकत्रित हुए, लेकिन मैं उन्हें नहीं मिला। इससे उन्हें निराशा हुई। मैं इसके लिए उनसे क्षमा माँगता हूँ। वल्लभभाईने देखा कि मेरी प्रार्थना और उनके प्रयत्नोंके बावजूद लोग रुकेंगे नहीं, इसलिए उन्होंने गाड़ी रुकवाकर मुझे बीचमें ही[२] उतार लिया और शान्तिपूर्वक आश्रम पहुँचा दिया।

निराश हुए भाइयों और बहनोंने मुझे क्षमा कर दिया है, यह बात तो मैं तभी मानूँगा जब वे सब चरखा चलाने लगेंगे। वस्तुतः देखा जाये तो क्षमा उन्हींको माँगनी चाहिए। वे स्टेशनपर आये ही क्यों? मेरी प्रार्थनापर[३] ध्यान न देकर वे स्टेशन आये, इसमें दोष उनका ही है। इससे हाथ कते सूतके उत्पादनमें जितनी कमी हुई है, हिन्दुस्तानका उतना ही नुकसान हुआ है। इसलिए यदि ये निराश भाई और बहन कौतूहलवश नहीं वरन् प्रेमवश स्टेशन आये हों तो उनसे मेरी विनती है कि वे सूतकी इस कमीको पूरा करें।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १-६-१९२४

८८. विद्यापीठ और आनन्दशंकरभाई

गुजरात विद्यापीठका एक विद्यार्थी और भक्त लिखता है।[४]

इस पत्रकी विषय-वस्तु, इसकी भाषा, इसके विचार और इससे झलकनेवाली देशभक्ति तथा विद्यापीठके प्रति अगाध प्रेमभाव मुझे इतने अच्छे लगे हैं कि मैंने पत्र लम्बा होनेके बावजूद उसे पाठकोंके सामने प्रस्तुत करना उचित समझा है। लेकिन आनन्दशंकरभाईसे मेरा परिचय इतना घनिष्ठ है कि उनके भाषणके जो अंश लेखकने उद्धृत किये हैं वे मुझे उनके योग्य नहीं लगे। मैंने सोचा कि पहले यह पत्र प्रकाशित

  1. २९ मईको।
  2. कांकरिया रेलवे यार्डमें।
  3. देखिए “मेरी प्रार्थना”, २५-५-१९२४, जिसमें गांधीजीने गुजरातके भाइयों और बहनोंसे अनुरोध किया था कि वे उन्हें देखने स्टेशनपर न आयें, बल्कि अपना समय सूत कातनेमें लगायें।
  4. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है।