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९०. परिषदोंके नियोजकोंको इशारा

लोग कहते हैं: “बड़ी-बड़ी सभाओं, जलसों और व्याख्यानोंके दिन चले गये। अब चुपचाप काम करनेके दिन आ गये हैं।” लेकिन परिषदों अथवा जलसोंके संचालक हमेशा चाहते हैं कि खूब धूमधाम हो। इस मोहमें वे कई बार सत्यको भूल जाते हैं और भोली-भाली जनताको धोखा देकर परिषद्की तैयारी करते हैं। एक परिषदकी विज्ञप्तिमें लिखा है:

बहुत हर्षकी बात है कि अधिवेशन बहुत बड़ी धूमधामसे होना निश्चित हुआ है। महात्मा गांधी, अली-बन्धु, पण्डित जवाहरलाल नेहरू, डाक्टर किचलू, मौलाना अबुल आजाद, देवदास गांधी, शंकरलाल बैंकर, राजगोपालाचारी, सेठ जमनालाल बजाज, मौलाना अ० जफरखाँ, श्रीमती गांधी, बीअम्मा साहिबा, तपस्वी सुन्दरलाल, माखनलाल चतुर्वेदी, श्रीमती सुभद्राकुमारी आदि-आदि प्रमुख नेताओंके पधारनेकी सम्भावना है।

सम्भव है कि स्वागतकारिणी सभाने ऐसे नेताओंको निमन्त्रणपत्र भेजा हो, लेकिन जबतक कमसे-कम उनकी तरफसे इस आशयका जवाब न मिले कि ‘आनेकी कोशिश करूंगा’ तबतक ऐसा लिखना कि उनके पधारनेकी सम्भावना है, अयथार्थ है। लोगोंके मनमें भ्रम पैदा करनेकी इच्छा कितनी ही अच्छी हो तो भी यह कार्य अनुचित ही है। लोग एक-दो बार धोखमें आ सकते है, लेकिन थोड़े ही समयमें कार्यकर्तागण अपनी प्रतिष्ठा और लोगोंका विश्वास खो बैठते हैं। अब्राहम लिंकनने ठीक ही कहा है: “हम थोड़े लोगोंको हमेशा धोखा दे सकते है और सब लोगोंको कुछ समय धोखा दे सकते हैं, लेकिन सब लोगोंको हमेशा धोखा देना अशक्य है।”

हिन्दी नवजीवन, १-६-१९२४

९१. पत्र: घनश्यामदास बिड़लाको

साबरमती
ज्येष्ठ सुदी १ [३ जून, १९२४][१]


भाई श्री ५ घनश्यामदासजी,

आपका खत मीला है। मैंने अंत्यज मंडलके नेताको लीख भेजा है कि आपने रू० ३०,००० देने की प्रतिज्ञा नहिं की है।:

  1. यहाँ प्रेषीको जातिमें दो फिरकोंके उल्लेखसे पता चलता है कि यह पत्र १३-५-१९२४ और २०-५-१९२४ को गांधीजी द्वारा प्रेषीको लिखे गये पत्रोंके साथ ही लिखा गया होगा। १९२४ में ज्येष्ठ सुदी १, ३ जूनको पड़ी थी।