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१८२ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ज्ञातिमें दो फिरके हो गये हैं। यह बात यदि बुरी है तो भी आपका फिरका दूसरेसे विनययुक्त रहनेसे झहर फैलता रुक जावेगा। यह तो है कि शांति और झगड़ा दोनों साथ-साथ नहिं चल सकते हैं। एकको ही ग्रहण करके उसीका सेवन करनेसे उसका फल मीलता है। झगड़ेका फल हम यूरोप में देख रहे हैं। सच्ची महोबत है हि नहिं । शांतिका प्रयोग समाजोंमें अबतक ठीक ढंगसे हुआ नहिं है।

आपका,
मोहनदास गांधी

मूल पत्र (सी० डब्ल्यू०६०४७) से।
सौजन्य: घनश्यामदास बिड़ला

९२. पत्र: परशुराम मेहरोत्राको

ज्येष्ठ सुदी १ [३ जून, १९२४][१]


चि० परसराम,[२]

तुम्हारा पोस्टकार्ड मोला। ‘रामायण‘ का अभ्यास खूब ध्यानसे करना। एक बार पढ़नेसे काफी नहिं होगा। मेरा विश्वास है कि ‘रामायण‘ तुमको शांतिप्रद होगा। सब बीमार खेर तो रहे?

बापूके आशीर्वाद


परसराम मेहरोत्रा
यू० पी० खद्दर बोर्ड
कानपुर

मूल पत्र (सी० डबल्यू० ४९६०) से।
सौजन्य : परशुराम मेहरोत्रा:
  1. डाकखानेकी मुहरसे।
  2. आश्रमवासी और गांधीजीके सचिव।