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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं; जी, नहीं। आजकलके अंग्रेज ऐसे नहीं है, इसलिए हमें अहिंसापूर्ण आचरण करना चाहिए। हमें अंग्रेजोंको सत्तासे च्युत करनेके लिए अपनी इच्छाशक्तिकी जरूरत है, हथियारकी नहीं और फिर जबतक कांग्रेस अहिंसाको नीति मानकर चलती है, तबतक तो हमारा आचरण अहिंसापूर्ण ही रहना चाहिए। मैंने ‘मेरा जीवन-कार्य’[१] शीर्षक लेखमें अपने इस अर्थका खुलासा किया है। उसमें मैंने फाँसी पाये एक बन्दी और जेलरका दृष्टान्त दिया है। मुझे कांग्रेसकी आगामी बैठकमें इस पूरे प्रश्नका अन्तिम रूपसे निबटारा कराना है।

महात्माजी, क्या आपने नागपुरके हिन्दू-मुस्लिम विवादोंके सम्बन्धमें सरकारी जाँच-समितिके सामने मुसलमानों द्वारा प्रस्तुत गवाहियाँ पढ़ ली है? मुसलमान गवाहोंने कहा कि लोकमान्य तिलक हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच ऐसे झगड़े कराने के लिए जिम्मेदार थे और हर मुसलमानको यह हक है कि वह कभी भी अपने घरको मसजिदमें बदल ले।[२]

नहीं, मैंने वे गवाहियाँ पढ़ी नहीं है। मैं उन्हें पढूँगा अवश्य। लोकमान्यको ऐसे साम्प्रदायिक झगड़ों के लिए जिम्मेदार ठहराना घोर कृतघ्नता है। लोकमान्यने स्वयं मुझसे कहा था कि यदि मुसलमानों को सौ फीसदी प्रतिनिधित्व देकर भी स्वराज्य हासिल किया जा सके तो वे (लोकमान्य) ऐसे समझौतेपर हस्ताक्षर करनेके लिए तैयार हैं। डा० मुंजेने मुझसे खास तौरपर अनुरोध किया है कि मैं नागपुरके बारे में कुछ भी न लिखू।

महात्माजीने आगे कहा कि लोगों को अपनी मुक्तिका मार्ग स्वयं ही खोजना चाहिए। उन्होंने इसपर खेद प्रकट किया कि देश के नेताओंने अहिंसापूर्ण असहयोगके उनके अपने तरीके की उपयोगिताके प्रश्नपर काफी गम्भीरतासे विचार नहीं किया है।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, १२-६-१९२४:
  1. देखिए खण्ड २३, पृष्ठ ३७०-७३।
  2. प्रतिनिधिने इस प्रश्नके साथ ही गांधीजीको स्वातन्यकी प्रतियाँ दी और अनुरोध किया कि वे उनको पढ़ जायें।