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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कर सकता अथवा तकुएको सीधा नहीं कर सकता। कई लोग चरखा बिगड़ जाने के कारण ही कातना छोड़ देते हैं। इसलिए मेरी रायमें, कताईकी परीक्षामें, मैंने जो बातें कहीं है, वे सभी आ जानी चाहिए। इस प्रशिक्षण-क्रमसे सीखनेवालोंको डर नहीं जाना चाहिए। जो काममें मन लगायेंगे, उनके लिए यह काफी आसान है। असल बात यह है कि यह काम संजीदगो के साथ उठाया जाना चाहिए।[१]

जिसमें आस्थाका बल है, वह सब-कुछ कर सकता है और उसे सब-कुछ आसान ही लगता है। जिसमें आस्था नहीं है, उसे हर काम कठिन लगता है। कताई सीखने का मतलब है सुस्ती छोड़कर मेहनतकश बनना। किसी बातका मौखिक उपदेश करने के बजाय स्वयं ही उसे करके दिखाना चाहिए। स्वराज्य भाषणोंसे नहीं मिल सकता, उसे तो कर्म के बलपर ही प्राप्त किया जा सकता है। कताई ही एक ऐसा काम है, जिसे सब लोग अपना सकते हैं। जब लोग चरखेकी उपेक्षा करने लगे, तभी भारत परतन्त्र और दरिद्र हुआ; चरखेको फिरसे अपने उचित स्थानपर प्रतिष्ठित करने में ही उसकी समृद्धिका मार्ग है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ५-६-१९२४

९५. हिन्दू-मुस्लिम एकता

हिन्दू-मुस्लिम एकताका सवाल भारतीय देशभक्तोंके सामने मौजूद सवालोंमें सबसे जबरदस्त है। पिछले हफ्ते उसपर मैं अपना लम्बा-चौड़ा बयान[२] दे चुका हूँ। अब यहाँ उसीका सार दे रहा हूँ। इन दोनों मजहबोंको मानने वाले लोग इस मामले में अपना-अपना फर्ज किस तरह अदा करते हैं, इसी आधारपर भावी पीढ़ियाँ इनके बारेमें अपना निर्णय देंगी। हिन्दू-धर्म और इस्लामके उसूल चाहे कितने ही अच्छे क्यों न हों, दोनोंकी खूबियों और खामियोंका निर्णय सिर्फ इसी बातसे किया जा सकता है कि ये समष्टि- रूप में अपने अनुयायियोंपर कैसा असर डालती हैं। अब उस वक्तव्यका सार सुनिए:

कारण

१. इस तनावका दूरवर्ती कारण है मोपलोंकी बगावत।

२. श्री फजल हुसैन द्वारा पंजाबके शिक्षा विभागमें मुसलमानोंकी तादादके

मुताबिक सरकारी नौकरियोंका बँटवारा करने का प्रयत्न और फलतः हिन्दुओं द्वारा उसका विरोध।:

  1. इससे आगेका हिस्सा ९-६-१९२४ के ‘नवजीवन’ में प्रकाशित गांधीजीके एक लेखसे लिया गया है, जिसमें उन्होंने बहुत अंशोंतक इसी विषयकी चर्चा की थी। इस लेखका शीर्षक भी यही है लेकिन यहाँ जो अनुच्छेद जोड़ा जा रहा है, वह यंग इडियामें नहीं है।
  2. देखिए “हिन्दू-मुस्लिम तनाव : कारण और उपचार", २९-५-१९२४।