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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

गलत अर्थ लगाना है। यदि कानूनकी दृष्टिमें सभी समान हैं, जैसा कि होना भी चाहिए, तो हर आदमीके साथ उसकी सहनशक्तिको देखकर बरताव किया जाना चाहिए। जिस चोरका शरीर नाजुक हो उसे भी ३० कोड़े लगाना और जो शरीर-से हट्टा-कट्टा हो उसे भी ३० कोड़े लगाना, निष्पक्ष व्यवहार नहीं माना जायेगा। वह तो नाजुक शरीरवाले के साथ अनुचित सख्ती और शायद हट्टे-कट्टे शरीरवालेके प्रति अनुग्रह ही कहा जायेगा। उसी तरह, उदाहरणके तौरपर, मोतीलालजी को सख्त जमीनपर बिछी नारियलकी खुरदरी चटाईपर सुलाना, समान व्यवहारका नहीं अतिरिक्त सजा देनेका उदाहरण होगा।

जेलकी व्यवस्थामें यदि यह स्वीकार कर लिया जाये कि कैदी भी मनुष्य ही है, तो कैदीको जेलमें प्रवेश करानेके समयकी प्रक्रिया आजसे भिन्न हो। अँगुलियोंके निशान जरूर लिये जायेंगे; रजिस्टरमें उसके पहलेके अपराध भी दर्ज किये ही जायेंगे; लेकिन साथ ही कैदीकी आदतों और रहन-सहनका ब्योरा भी दर्ज किया जायेगा। यदि अधिकारी कैदियोंको मनुष्य समझने लगें तो उन्हें जो पद्धति स्वीकार करनी होगी उसे “भेद करना” न कहकर “वर्गीकरण" ही कहा जायेगा। एक प्रकारका वर्गीकरण तो आज भी मौजूद है। उदाहरणके लिए, कुछ अहातोंमें कदियोंको लम्बी कोठरियोंमें इकट्ठा रखा जाता है। खतरनाक अपराधियोंके लिए अलग-अलग कोठरियाँ होती है और तनहाईकी सजावालोंको ताला लगाकर अलग-अलग रखा जाता है। फिर, फाँसीवालोंकी कोठरियाँ भी होती हैं, जिनमें फाँसीकी सजा सुनाये गये कैदियोंको रखा जाता है और अन्तमें हवालाती कैदियोंके लिए अलग कोठरियाँ होती हैं। पाठकोंको यह जानकर आश्चर्य होगा कि ज्यादातर राजनीतिक कैदियोंको अलग या तनहाईमें रखा जाता था। कुछको तो फाँसीकी सजा पाये हुए अपराधियोंकी कोठरियोंमें भी रखा जाता था। लेकिन यहाँ मैं एक बात साफ कर देना चाहूँगा, अन्यथा अधिकारियोंके साथ कहीं अन्याय न हो जाये। वह बात यह है कि जिन्हें इन विभागों और कोठरियोंकी जानकारी नहीं है, वे ऐसा सोच सकते हैं कि फाँसीकी सजा सुनाये गये कैदियोंकी कोठरियाँ खास तौरपर कुछ खराब होती होगी, लेकिन वस्तुस्थिति एसी नहीं है। जहाँतक यरवदा जेलका सम्बन्ध है, इन कोठरियोंकी बनावट बहुत अच्छी है और ये हवादार हैं। लेकिन जो चीज बहुत आपत्तिजनक है वह है इनके इर्द-गिर्दका वातावरण।

जैसा मैंने ऊपर बताया, वर्गीकरण अनिवार्य है और वह किया भी जाता है। फिर कोई कारण नहीं कि वह वैज्ञानिक और मानवतापूर्ण भी क्यों न हो। मैं जानता हूँ कि मेरे सुझाये हुए ढंगसे वर्गीकरण करनेका मतलब है सारी पद्धतिमें आमूलचूल परिवर्तन । बेशक, इसमें खर्च ज्यादा होगा और नई पद्धतिको चलानेके लिए दूसरे ढंगके लोगोंकी भी जरूरत होगी। लेकिन आज अतिरिक्त खर्च होगा तो अन्तमें बचत भी होगी। मैं जो क्रान्तिकारी परिवर्तन सुझा रहा हूँ उसका सबसे बड़ा लाभ तो यह होगा कि अपराधों की संख्यामें निश्चित रूपसे कमी आ जायेगी और कैदियोंका

१. मोतीलाल नेहरू (१८६१-१९३१)।