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२. टिप्पणियाँ

स्वर्गीया श्रीमती रमाबाई रानडे

रमाबाई रानडेका[१] निधन राष्ट्रकी एक बहुत बड़ी हानि है। हम जिन गुणोंकी एक हिन्दू विधवामें कल्पना करते हैं वे उन सब गुणोंकी साकार मूर्ति थीं। अपने तेजस्वी पतिके जीवन-कालमें वे उनकी सच्ची मित्र और सहधर्मिणी रहीं। उन्होंने अपने पतिके दिवंगत होने के बाद उनके एक प्रिय कामको आगे बढ़ाना ही अपना जीवन-कार्य बना लिया था। श्री रानडे समाज-सुधारक थे और भारतीय नारियोंके उत्थानमें उनकी गहरी रुचि थी। इसलिए रमाबाई प्राणपणसे सेवासदनके काममे जुट गई। इसी काममें उन्होंने अपनी समूची शक्ति लगा दी। इसीका परिणाम है कि आज भारत-भरमें सेवासदन-जैसी कोई दूसरी संस्था नहीं है। वहाँ लगभग एक हजार बालिकाओं और महिलाओंको शिक्षा दी जा रही है। कर्नल मैडॉकने[२] मुझे बतलाया है कि सैसून अस्पतालमें ही सबसे अच्छी और सबसे अधिक संख्यामें भारतीय नर्से तैयार की जाती हैं और वे सब नर्से सेवासदनसे आई हुई होती हैं। इसमें शक नहीं कि रमाबाईको देवधर[३]―जैसा अथक परिश्रमी और छोटीसे-छोटी चीजोंका भी पूरा-पूरा ध्यान रखनेवाला एक कार्यकर्ता भी मिल गया था। लेकिन उनके पास सुयोग्य और निष्ठावान सहयोगी थे, यह तथ्य भी रमाबाईको ही अधिक प्रशंसनीय बनाता है। सेवासदन सदा उनकी पवित्र स्मृतिका जीवन्त स्मारक बना रहेगा। मैं अपनी इस दिवंगत बहनके परिवार और सेवासदनके अनेक बालक-बालिकाओंके प्रति विनम्रतापूर्वक अपनी सहानुभूति प्रकट करता हूँ।

प्रिंसिपल गिडवानी[४]

मेरे पूछनेपर श्रीमती गिडवानी अपने एक पत्रमें लिखती हैं:

कुछ समय पहले जब मैं अपने पतिसे मिलने गई, तब देखा कि अधिकारी लोग उनके साथ अशिष्टतासे पेश आ रहे थे। वे कोठरीमें बन्द थे और उनके कपड़े मैले थे। सात दिनके अनशनके कारण वे बहुत दुबले दिख रहे थे। इससे पहले चौरीचौराके समय भी उन्होंने अनशन किया था, लेकिन तब वे इतने कमजोर नहीं हुए थे। उनको अन्य बन्दियों-जैसा ही खाना दिया जाता है। मुलाकातियोंको उनसे मिलनेमें तरह-तरहकी कठिनाइयाँ पैदा की
 
  1. (१८६२-१९२४); महादेव गोविन्द रानडेकी पत्नी
  2. पूनाके सैसन अस्पतालके सर्जन-जनरल, जिन्होंने जनवरी, १९२४ में गांधीजी का एपेण्डिसाइटिसका ऑपरेशन किया था।
  3. गो० कृ० देवधर (१८७९-१९३५); सर्वेंटस ऑफ इंडिया सोसाइटीके सदस्थ; बादमें उसके अध्यक्ष।
  4. आसूदोमल टेकचन्द गिडवानी, गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबादके प्रधानाचार्य।