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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बोर्डके चुनाव भी लड़े हैं। हमारे इन चुनावोंके अनुभव बहुत ही दुःखजनक हैं। उनसे कांग्नेसके कार्यको बल नहीं मिला है, प्रत्युत हममें बहुत बड़ी कमजोरी आई है। उनके फलस्वरूप हमारे असहयोगी कार्यकर्ताओंमें परस्पर तीखे मतभेद, द्वेष तथा घृणाके भाव पैदा हो गये हैं।

दूसरी ओर हमने अपने नरमदलीय समर्थकों, जमींदारों तथा इनमें दिल- चस्पी रखनेवाले अन्य लोगोंकी सहानुभूति भी लगभग गॅवा दी है। उन्होंने अब डराने-धमकानेका रुख अख्तियार कर लिया है और वे हमारे मार्गमें रोड़े अटकाने तथा हमें बदनाम करनेका भरसक प्रयत्न कर रहे हैं। इससे भी अधिक गम्भीर बात यह है कि हमें सरकारसे सम्बन्ध रखना पड़ता है। हम सरकारसे अनुदान प्राप्त करते हैं, इसलिए हमारे लिए सरकारी अधिकारियोंको सभी कुछ लिख भेजना जरूरी हो जाता है। यहाँ हमें जनताकी सेवा करनेका अवसर तो अवश्य मिलता है, किन्तु हम जो श्रम, समय और शक्ति इसमें लगाते हैं, उसका उतना परिणाम नहीं निकलता और उससे हमारा जल्दी स्वराज्य लेनेको कार्य भी सचमुच आगे नहीं बढ़ता। जिला बोर्डके अन्तर्गत देशी भाषाओंके प्राथमिक, माध्यमिक तथा मिडिल स्कूल हमारे नियन्त्रणमें रहते हैं, परन्तु हमको उन्हें विहित सरकारी नीतिके अनुसार ही चलाना पड़ता है। अतः मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप मुझे अपनी राय बतायें। हमारे जिलेमें बोर्डके अध्यक्ष और उपाध्यक्षका शीघ्र ही चुनाव होनेवाला है; हमें आपका स्पष्ट उत्तर चाहिए कि हम इन स्थानोंके लिए चुनाव लड़ें या न लड़ें। एक बात साफ समझमें आती है और वह यह है कि यदि हम अपने आदमियोंको अध्यक्ष और उपाध्यक्ष नहीं बनवा सकते तो हमारा इन संस्थाओंमें जाना व्यर्थ है।

मेरा अन्तिम प्रश्न है, हमें अपने कांग्रेस-संगठनोंका क्या करना चाहिए? वर्तमान नियमोंके अनुसार हमें गाँवोंसे मण्डलोंके लिए, मण्डलोंसे थानोंके लिए, थानोंसे तहसीलों अथवा जिलेके लिए, जिलेसे प्रान्तके लिए तथा प्रान्तसे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके लिए सदस्य चुनने होते हैं। यह एक बहुत ही बड़ा काम है जिसे सँभालना मुश्किल है। हमारे पास न तो कार्यकर्ता है और न पैसा है, इसलिए हम इस विराट् संगठनको चलानेमें असमर्थ हैं। हममें से कुछ कहते हैं कि हमें अपनी सारी गतिविधि जिला बोडों और नगरपालिकाओंपर केन्द्रित करनी चाहिए, तथा कांग्रेस-संगठनको भगवान्पर छोड़ देना चाहिए। कांग्रेस-संगठनोंको चलाते रहना बड़े खर्चका काम है और वह साराका-सारा काम लगभग बन्द ही पड़ा है।

जहाँतक रचनात्मक कार्यका प्रश्न है, उसमें न तो हमारे कार्यकर्ताओंकी रुचि है, न गाँववालोंको, और न जनताकी ही। उसमें बहुत अधिक समय लगता है और उससे स्वराज्य शीघ्र कैसे प्राप्त हो सकता है, यह बात मेरी