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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दें। यदि आप अन्यथा निर्णय दें तो हम सबको एक साथ सारे स्थान रिक्त कर देने चाहिए। महसूल अथवा लगानोंकी अदायगी बन्द करनेकी जरूरत पड़े तो लोग उसके लिए तैयार नहीं जान पड़ते। इन संस्थाओंके भीतर हमें क्या काम करना है इस विषयमें कुछ भी स्पष्ट नहीं है। कुछ कहते हैं कि हमें इन संस्थाओंका उपयोग सरकारके विरुद्ध संघर्ष-क्षेत्रकी तरह करना चाहिए। कुछ लोग रोड़े अटकानेकी नीति अपनानेका आग्रह करते हैं और कुछ यह सलाह देते हैं कि हम इन संस्थाओंके कार्य-संचालनमें योग दें और इनका उपयोग जनताके हित-साधनके लिए करें। इन संस्थाओंपर अधिकार करनेसे हमारे कांग्रेस-संगठनोंमें कमजोरी आई है।

लेखकको सार्वजनिक जीवनका व्यापक अनुभव है और वे बड़े पक्के कार्यकर्ता हैं। अतः उनका पत्र ध्यानसे पढ़ने योग्य है। मेरे लिए तो वह आत्म-निरीक्षणका आमन्त्रण है।

मुझे यह पसन्द नहीं है और न कभी पसन्द था कि लोग सभी बातोंके लिए मेरा मुँह ताकें। यह राष्ट्रीय कामोंकी व्यवस्थाका निकृष्ट ढंग है। कांग्रेसको किसी एक व्यक्तिके नचाये नहीं नाचना है, जिसके आसार दिखाई दे रहे हैं, फिर वह व्यक्ति चाहे कितना ही भला अथवा महान् क्यों न हो। मैं अकसर सोचता हूँ कि अगर मैं सजाकी पूरी अवधितक जेलमें ही रहता तो वह देश और मेरे लिए बेहतर होता। तबतक देश किसी ऐसे कार्यक्रमपर जम जाता जो उसका अपना कहा जा सकता। आज यह कहना कठिन है कि आखिर कांग्रेसका कार्यक्रम है किसका। यदि कार्यकर्ताओंको मार्ग-दर्शनके लिए हर बार मुझसे सलाह लेनी पड़े तो यह देशका कार्यक्रम तो हो नहीं सकता और वह मेरा भी नहीं हो सकता, क्योंकि अकेला मैं कोई भी कार्यक्रम कार्यान्वित नहीं कर सकता। केवल प्रस्तुत पत्र-लेखक ही मेरी सलाहके मोहताज नहीं हैं बल्कि कार्यकर्ताओंकी आम प्रवृत्ति यही है। एक सज्जन कार्यक्रमकी प्रायः प्रत्येक बातपर आपत्ति करने के पश्चात् कहते हैं : “किन्तु इस सबके बावजूद आपके प्रति मेरी श्रद्धा और मेरा स्नेह इतना गहरा है कि आप जो-कुछ करनेके लिए कहें मैं कर सकता हूँ, चाहे मैं आपसे सहमत होऊँ, चाहे न होऊँ।" ये सज्जन इनसे भी आगे हैं। प्रस्तुत सज्जन कमसे-कम कार्यक्रमसे तो सहमत हैं और सलाह माँगते हैं। किन्तु वे तो मेरा विरोध करते हैं और फिर भी मेरा अनुसरण करना चाहते हैं। अपने प्रति इस तरहकी भक्तिपर मैं भले ही कुछ गर्व कर लूँ; किन्तु उससे अपने ध्येयकी ओर हमारी प्रगति निश्चय ही रुकती है। हमें अपने ही सच्चे विश्वासके अनुसार काम करनेका साहस करना चाहिए, चाहे फिर उसमें भयानक भूलें हो जानेकी आशंका ही क्यों न हो। स्वराज्य परीक्षणों, प्रयोगों तथा भूलोंके रास्तेसे गुजरकर शासन करनेका मार्ग है। अपनी भूलोंके कारण मिट जाना, किसी एक व्यक्तिके――फिर चाहे वह कितना ही बुद्धिमान क्यों न हो―― निरन्तर मार्गदर्शनमें चलते रहकर भूलोंसे बचनेकी अपेक्षा हजार गुना अच्छा है। मैं सोचने लगा हूँ कि मेरा समस्त सार्वजनिक कार्योंसे पूर्णत: निवृत्त होकर और अपने कताई और बुनाईके