पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/४५

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५. क्या यह असहयोग है?

कुछ लोगोंका कहना है कि खिताबों, स्कूलों और कौंसिलोंका बहिष्कार असफल होने के साथ-ही-साथ (वैसे मेरे विचारसे इन बातोंमें बहिष्कारको असफल मानना गलत है) असहयोगका अवसान हो गया है। आलोचकोंको मन्द गतिसे और उत्तेजना पैदा करनेवाले ढंगसे चल रहे खादीके काममें असहयोगका लेश भी दिखाई नहीं देता। वे भूल जाते है कि यह चतुर्विध बहिष्कार-इमारतके पूरे होनेतक उसे उठानेवाले कारीगरोंके खड़े रहनेके लिए नितान्त आवश्यक आधारके समान है। यदि हम इन संस्थाओंका, जो उस सत्ताकी प्रतीक हैं जिसका हम नाश करना चाहते हैं, उपयोग न करें तो इनका महज बना रहना कोई हर्जकी बात नहीं है। सच तो यह है कि इस चतुर्विध बहिष्कारके सहारेके बिना हम अपनी इमारत खड़ी नहीं कर सकते। और यदि हम इन संस्थाओंकी सहायताके बिना बल्कि इनके विरोधके बावजूद कांग्रेसका काम ठीकसे चलाते रहें तो हमारी विजय निश्चित है। इसके अलावा हमें यह न भूलना चाहिए कि हमारा बहिष्कार चतुर्विध नहीं बल्कि पंचविध है। पाँचवाँ विषय है भी सबसे अधिक महत्वपूर्ण। मेरा तात्पर्य विदेशी (न कि सिर्फ ब्रिटिश) कपड़े के बहिष्कारसे है।

बहिष्कार हमारे कार्यक्रमका निषेधात्मक हिस्सा है, हालाँकि इस कारण वह कुछ कम उपयोगी नहीं है। खादी, राष्ट्रीय शालाएँ, पंचायतें, हिन्दू-मुस्लिम ऐक्य और अछूतों तथा शराबखोरों और अफीमचियोंका उद्धार, ये हमारे कार्यक्रमके रचनात्मक पक्ष हैं। हम जैसे-जैसे इस दिशामें आगे बढ़ते जायेंगे वैसे-वैसे बहिष्कार और इसलिए स्वराज्यकी दिशामें प्रगति करेंगे। प्रकृतिको रिक्तता नापसन्द है। अतएव विध्वंसके साथ-साथ निर्माण भी चलना चाहिए। यदि तमाम खिताबयाफ्ता भाई खिताब छोड़ भी दें और पाठशालाएँ, अदालतें और कौंसिलें बिलकुल खाली भी हो जायें और इस सबसे परेशान होकर सरकार सत्ता हमारे हाथोंमें सौंप दें तो भी यदि हमारे पास रचनात्मक कार्य-रूपी पूंजी न होगी तो हम स्वराज्यका संचालन न कर सकेंगे। हम बिलकुल असहाय हो जायेंगे। मेरे मनमें अकसर यह सवाल उठा करता है कि क्या लोगोंको इस बातकी पर्याप्त प्रतीति है कि हमारे आन्दोलनका उद्देश्य सिर्फ शासन-सूत्रके संचालकोंको बदलना नहीं बल्कि इस प्रणाली और इन तरीकोंको बदलना है। अतएव मेरे विचारसे तो खादीका कार्यक्रम जहाँ पूरा हुआ कि परिपूर्ण स्वराज्य ही मिल गया। भारतमें अंग्रेजोंकी दिलचस्पी बिलकुल स्वार्थमूलक है और वह राष्ट्रीय हितके विरुद्ध है। उसके राष्ट्रीय विरोधी होने का कारण है भारतकी कपासके प्रति उसकी बदनीयती। अतएव विदेशी कपड़े के बहिष्कारका मतलब इंग्लैंड तथा दूसरे तमाम देशोंके स्वार्थमूलक हितोंको सत्त्वहीन बना देना है। यदि अकेले इंग्लैंडके कपड़ेका बहिष्कार किया जाये तो उससे अंग्रेज लोगोंको भले ही हानि पहुँचे; पर वह हमारे रचनात्मक काममें सहायक नहीं हो सकता। सिर्फ इंग्लैंडके कपड़े के