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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बहिष्कारका मतलब खाईसे बचकर खन्दकमें गिरना होगा। जबतक तमाम विदेशी कपड़ेका व्यापार बन्द नहीं हो जाता और उसका स्थान खादी पूरे तौरपर नहीं ले लेती तबतक हमारा विनाशकारी शोषण रुक नहीं सकता। अतएव विदेशी कपड़ेका बहिष्कार, बहिष्कार-कार्यक्रमका केन्द्र-बिन्दु है और यह सबसे प्रमुख बहिष्कार तबतक असम्भव है जबतक कि खादीका प्रचार घर-घरमें न कर दिया जाये। अपने ध्येयकी सिद्धिके लिए हमें अपने सभी साधनोंका अधिकसे-अधिक उपयोग करना पड़ेगा। हमें धन, जन और संगठन-तन्त्रकी जरूरत होगी। हम हिन्दू-मुस्लिम एकता और अस्पृश्यता-निवारणके बिना खादीको घर-घर नहीं पहुँचा सकते। खादीके कामको पूरा करनेका अर्थ है अपनी स्वशासनकी क्षमताको सिद्ध कर देना। खादीका कार्यक्रम आम जनताका कार्यक्रम है। अतएव उसे सफल बनानेके लिए प्रत्येक भारतवासीको फिर चाहे वह राव हो या रंक, छोटा हो या बड़ा, हिन्दू हो या गैर-हिन्दू, हाथ बँटाना होगा।

शंकालु लोग कहते हैं, “खादीसे स्वराज्य कैसे मिल सकता है? क्या अंग्रेज हमें सत्ता सौंपकर यहाँसे चले जायेंगे?" उत्तरमें मैं “हाँ" भी कहूँगा और “नहीं" भी। “हाँ" इसलिए कि तब अंग्रेज समझ जायेंगे कि हमारा और भारतका हित एक ही होना चाहिए; तब वे केवल सेवक बनकर यहाँ रहनेमें सन्तोष मानेंगे; क्योंकि उन्हें ज्ञान हो जायेगा कि अब वे अपना व्यापार हमपर लाद नहीं सकते। इसलिए खादीका कार्यक्रम सफल हो जानेपर अंग्रेजोंके हृदय भी बदल जायेंगे। आज वे मालिक बनकर रहना अपना हक मानते हैं, लेकिन खादीका कार्यक्रम पूरा हो जानेपर वे हमारे मित्र बनने में गौरव मानेंगे। यदि हम अंग्रेजोंको यहाँसे निकाल भगाना चाहते हों और उनके, उचित-अनुचित दोनों तरहके स्वार्थोंका नाश कर देना चाहते हों, तो मेरा उत्तर होगा “नहीं"। अहिंसात्मक असहयोगका यह उद्देश्य नहीं है। अहिंसाकी अपनी सीमाएँ हैं। जो अहिंसक है वह न घृणा करता है और न घृणा उत्पन्न करता है। अहिंसाकी प्रकृति ही ऐसी है कि वह ऐसा कर नहीं सकती। इसपर शंकालु लोग फिर कहते हैं, “लेकिन फर्ज कीजिए कि अंग्रेज अपनी प्रणाली में परिवर्तन करने से इनकार कर दें और तलवारके बलपर ही भारतपर अपना कब्जा कायम रखने की जिद पकड़े रहें तो खादीका घर-घर प्रचार हो जानेपर भी क्या बनेगा?" खादीकी शक्तिपर इस प्रकार अविश्वास करते हुए वे इस बातको भूल जाते हैं कि खादी सविनय अवज्ञाकी एक अनिवार्य तैयारी है और इस बातको तो सभी लोग मानते है कि सविनय अवज्ञा एक अदम्य शक्ति है। खादीका प्रचार जबतक घर-घरमें न हो जाये तबतक व्यापक सविनय अवज्ञा अर्थात् अहिंसात्मक अवज्ञाकी मुझे तो कोई सम्भावना दिखाई नहीं देती। जिस किसी भी जिलेमें खादीका पूरा संगठन हो सकता हो और जहाँके लोग कष्ट-सहनके लिए भी प्रशिक्षित हों, उस जिलेको सविनय अवज्ञाके लिए तैयार ही समझना चाहिए, और मुझे तो इस बातमें कोई शक ही नहीं है कि इस तरह संगठित एक ही जिला इतना शक्तिशाली होगा कि सरकार उसके मुकाबले अपनी सारी ताकत लगाकर भी उसका मार्ग अवरुद्ध नहीं कर सकती।