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भगवानदासके पत्रपर टिप्पणी

अब अन्तमें यह सवाल रह जाता है कि फिर यह कठिन काम करेगा कौन? लेकिन जो चर्चा हम अभी कर रहे हैं, उसके साथ इसका सम्बन्ध नहीं है। मैं तो सिर्फ इसी सवालका जवाब देना चाह रहा था कि क्या रचनात्मक कार्यक्रम अर्थात् खद्दर असहयोगका अंग माना जा सकता है। मैंने यहाँ यह साबित करनेकी कोशिश की है कि खादी असहयोगके रचनात्मक पक्षका अभिन्न अंग है।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, ८-५-१९२४

६. भगवानदासके पत्रपर टिप्पणी

मुझे बाबू भगवानदासका पत्र प्रकाशित करते हुए खुशी हो रही है। कांग्रेसकी स्वराज्य-सम्बन्धी योजना तो तभी बन सकती है जब कांग्रेस स्वराज्य लेनेकी स्थितिमें आ जायेगी। आज कोई नहीं कह सकता कि तब कांग्रेस क्या करेगी। पर मैंने बाबू भगवानदासको वचन दिया है कि मैं स्वराज्यके सम्बन्धमें अपनी योजना निश्चित ही प्रकाशित करूँगा। मैं जानता हूँ कि स्वराज्य सम्बन्धी मेरी कल्पनाके बारेमें लोगोंके दिमागमें तरह-तरहकी धारणाएँ हैं। मैं सिर्फ इतना चाहता हूँ कि मुझे थोड़ा समय दिया जाये। तबतक मैं अपने सम्माननीय देशवासियोंको यह यकीन दिला देना चाहता हूँ कि पूंजीपतियोंके खिलाफ मेरे मनमें कोई बात नहीं है। मैं हिंसामें विश्वास नहीं करता, इसलिए मेरे मनमें उनके विरुद्ध कोई योजना हो ही नहीं सकती। मैं इतना अवश्य चाहता हूँ कि पूँजीपति――और मजदूर भी――पूरी तरह ईमानदारी बरतें। मैं ऐसे पूँजीवादका जरूर विरोध करूँगा जो मुट्ठी-भर लोगोंके लाभके लिए देशकी सम्पत्तिका शोषण करनेका साधन बनाया जाता हो। फिर चाहे वे पूँजीपति विदेशी हों चाहे देशके। पर हम पहलेसे ही किसी योजनाकी कल्पना न करें।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, ८-५-१९२४

१. (१८६९-१९५६); लेखक, दार्शनिक व काशी विद्यापीठके आचार्य ।

२. इसमें गांधीजीसे अनुरोध किया गया था कि ‘वे यंग इंडिया द्वारा इस बातका संकेत दें कि भारतको किस प्रकारके स्वराज्यकी जरूरत है।' पत्रके पूरे पाठके लिए देखिए परिशिष्ट १|

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