भाईश्री ५ वालजी,
आपकी दूसरी लेख-सामग्री मुझे मिल गई है। आपको प्रूफ तो भेजे ही जायेंगे। पूरा हिमालय तो अभी हमें चढ़ना है, आपको नहीं। आप तो अपने बारेमें ‘आधा हिमालय चढ़ गये' कह सकते हैं। जिन दिनों मेरा मुकदमा चल रहा था उन दिनों आपने जो लेख लिखा उसकी जानकारी तो आपको होनी चाहिए न कि मुझे। क्या मुझे अपने साथ जेलमें कोई कागज ले जानेकी इजाजत थी?
मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ६००२) की फोटो-नकलसे।
सौजन्य : वालजी गो० देसाई
११. लाला लाजपतरायको भेजे गये तारका मसविदा
स्वप्नमें भी नहीं सोचा है। सहयोगके योग्य हृदय-परिवर्तन नजर नहीं आता।
१. डाकखानेकी मुहरके अनुसार।
२. यह लाला लाजपतरायके उस तारके उत्तरमें था जो उन्होंने ७ मई, १९२४ को हैम्पस्टैड, इंग्लेंडसे भेजा था और जो गांधीजी को ८ मईको मिला था। तार इस प्रकार था: “तार आये है, उनसे सूचना मिली है कि आगामी कांग्रेसमें आप कौंसिलोंके जरिये सरकारके साथ सहयोग करनेका प्रस्ताव रखने जा रहे हैं, इससे बड़ी खलबली पैदा हो गई है। यदि यह सच नहीं है तो कृपया तार दें। क्रॉनिकलका तार आज पढ़ा।" डेलो टेलोग्राफ, लन्दनमें भी, उसके कलकत्ता स्थित संवाददाता द्वारा भेजे गये पत्रमें निम्नलिखित सूचना छपी थी: “आगामी कांग्रेसमें महात्मा गांधीने इस कार्यक्रमके आधारपर स्वधनेतृत्व करनेका निर्णय किया है कि विधान-सभा तथा प्रान्तीय कौंसिलोंमें बहुमत प्राप्त करके बजटको व्यर्थ बतानेके स्थानपर एक ऐसा कार्यक्रम रखा जाये जिसमें आवश्यक सेवाओंके संचालनमें सहयोग किया जाये और साथ ही पर्याप्त बहुमतका समर्थन प्राप्त करके जल्दी-जल्दी अधिक सुधारोंकी माँग की जाये, उनका रूप बदला जाये और भारतीयकरणको, जिसमें सेना भी शामिल है, गति दी जाये।