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आगामी परिषद्

रह सकते हैं? अभयदान सत्याग्रहीकी प्रथम परीक्षा है। इसमें हममें से कितने लोग पास हो सकते हैं? अतएव हमें दो वर्ष पहलेकी स्थितिसे आगे नहीं बढ़ना चाहिए और गुजरातके एक ही ताल्लुके या जिलेको तैयार करनेपर अधिक जोर देना चाहिए। मैं मानता हूँ कि ऐसा ताल्लुका फिलहाल तो बोरसद भी नहीं है। बारडोली होना चाहिए। परन्तु वह कहाँ है? हम बोरसदके स्थानिक सत्याग्रहके लिए जिस कम तैयारीसे काम चला सके, उसके बलपर हम स्वराज्यका बीड़ा नहीं उठा सकते।

मैं ऐसी तैयारीकी शर्ते यहाँ दे रहा हूँ:

१. तैयार ताल्लुकेका लगभग हरएक स्त्री-पुरुष ताल्लुकेमें ही कती-बुनी खादी पहनता हो।

२. शराब और अफीमका त्याग इस हदतक हो कि वहाँ इन चीजोंकी एक भी दुकान न हो।

३. वहाँ हिन्दुओं और मुसलमानोंमें पूरी दिली मुहब्बत हो।

४. वहाँ अन्त्यज लोग अछूत न माने जाते हों, इतना ही नहीं; बल्कि उनके बालकोंको राष्ट्रीय पाठशालाओंमें शिक्षा पाने और आम कुओंसे पानी भरने तथा मन्दिरोंमें दर्शन करनेकी पूरी स्वतन्त्रता हो।

५. वहाँ जगह-जगह राष्ट्रीय पाठशालाएँ हों।

६. वहाँ अदालतोंमें शायद ही कोई मामला जाता हो और आपसी लड़ाई- झगड़ोंके फैसले पंचोंकी मार्फत ही किये जाते हों।

सच पूछें तो ऐसी तैयारी करने के लिए बोरसदको तैयार होना चाहिए और यदि वह तैयार न हो तो उसे तैयार होनेका निश्चय करना चाहिए।

आनन्द ताल्लुकेके लोगोंने तो बारडोलीके समय अर्थात् १९२१ में ऐसी तैयारी कर लेनेका प्रस्ताव किया था। किन्तु वह आनंद शायद आज तैयार नहीं है; परन्तु क्या वह इसकी तैयारी करने के लिए भी तैयार है? मैं आशा करता हूँ कि बोरसदमें विलायती या देशी मिलोंके कपड़ेका एक टुकड़ा भी नजर नहीं आयेगा। यदि आये भी तो सिर्फ सरकारी नौकरों आदिके शरीरोंपर। मैंने सुना था कि मण्डप बनाने के सम्बन्धमें कुछ कठिनाई हो रही है। यह भी सुना था कि खादीके मण्डपमें खर्च बहुत आने के कारण मिलके कपड़ेसे मण्डप बनानेकी बात उठी थी। “महँगी होनेपर भी खादी सस्ती है और दूसरा कपड़ा मुफ्त मिलनेपर भी महँगा है" यह पाठ हम जबतक न पढ़ लेंगे तबतक हम पूर्णतः खादीमय नहीं हो सकते। यदि हमें हिन्दुस्तानके गरीबोंसे अपना तादात्म्य करना हो तो खादी महँगी है या सस्ती, महीन है या मोटी, यह सवाल हमारे मनमें उठना ही नहीं चाहिए। यदि पड़ता न बैठे तो हम नंगे रहने के लिए तैयार रहें, परन्तु दूसरा कपड़ा देहसे हरगिज न छुआयें। इसी प्रकार यदि खर्चके लिए रकम न हो तो हम बिना मण्डपके ही काम चला लें। हमारा मण्डप तो तारे रूपी रत्नोंसे जटित आकाश है। जहाँ समयपर मेह बरसता हो वहाँ मण्डपको बहुत जरूरत नहीं रहती। हम वहाँ बाँसोंकी चौहदी बनाकर अपना काम चला लें। जो कला-रसिक हों वे इसमें अपना कला-कौशल भी दिखा सकते हैं। सभाएं सुबह-शाम