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दर्दनाक स्थितिको समाप्त करने के लिए सभी कांग्रेसी हिन्दुओंको अन्त्यज-रक्षक बन जाना चाहिए और जहाँ गाड़ियोंमें अन्त्यज दिखाई दें, उनके लिए उचित है कि वे उनकी पूरी तरह रक्षा करनेके लिए तैयार रहें। यदि कोई किसी अन्त्यजको पीटे तो वे बीचमें पड़कर उसकी मार अपनेपर झेल लें। यही सबसे आसान तरीका है। परन्तु इससे इस रोगकी जड़ें नहीं कट सकतीं। इसकी जड़ें काटने के लिए तो अस्पृश्यता-निवारणकी हलचल व्यापक बनाई जानी चाहिए। वह व्यापक तभी बन सकती है जब कांग्रेसके सदस्य खरे हों। अभी तो अस्पृश्यताकी बीमारी उनके भीतर भी घर किये है। कांग्रेसके कितने ही सज्जन अन्त्यजोंको राष्ट्रीय पाठशालाओंमें स्थान नहीं देते। उनका विश्वास कच्चा है। अन्त्यज परिषद् ऐसे शंकित चित्त लोगोंसे कांग्रेस छोड़ देने की प्रार्थना करे और अन्त्यजोंमें जागृति बढ़ाये। वह इस बातकी जाँच करे कि उन्हें रेल में सफर करने में क्या-क्या दिक्कतें पेश आती हैं और उनका इलाज खोजे। वह उन्हें बताये कि वे अपनी रक्षा किस प्रकार कर सकते हैं।

उनके लिए पाठशालाएँ बढ़ाना, कताई-बुनाई आदिकी वृद्धि करना, और उन्हें शराब वगैरह छोड़नेकी प्रेरणा देना आदि काम भी उसके साथ हैं ही। हरेक कार्यमें विघ्न तो हुआ ही करते हैं; परन्तु यदि इस कार्य के लिए दृढ़ स्वयंसेवक मिल जायें तो अबतक जितना काम हुआ है उससे बहुत अधिक काम किया जा सकता है। यदि अन्त्यज परिषद् सच्चे सेवकोंकी संख्या बढ़ा सके तो यह काम बहुत ही मूल्यवान ठहरेगा।

‘एक नम्र सेवक' से

एक लेखकने “एक नम्र सेवक"के नामसे पत्र लिखा है। उन्होंने अपना नाम प्रकट नहीं किया है। उनका ऐसा ही एक पत्र पहले भी आया था जिसे मैंने फाड़ दिया था। अब उनका यह जो दूसरा पत्र आया है, इसमें उन्होंने अपने पहले पत्रकी याद दिलाई है। उन्होंने यह नहीं लिखा है कि उन्होंने अपने पहले पत्रमें क्या बात पूछी थी। मेरा सामान्य नियम तो यह है कि गुमनाम पत्रोंकी ओर कोई ध्यान न दिया जाये। इस कारण इन ‘नम्र सेवक’ से मेरी नम्र विनय है कि यदि उनके प्रश्न महत्वपूर्ण हों तो उन्हें दोबारा लिख भेजें और नीचे अपने हस्ताक्षर करें।

ईद मुबारक

मुसलमान भाइयोंने मेरे नाम ईदके मुबारकबाद लिख भेजे हैं। मैं उनके इस प्रेमके लिए उनका शुक्रगुजार हूँ। मुझे यकीन है कि वे यह नहीं चाहते होंगे कि मैं हर भाईको अलहदा-अलहदा पत्र लिखकर धन्यवाद दूं। मैं चाहता हूँ कि उन्हें भी ईद मुबारक हो। इस समय, जब दोनों जातियोंमें अविश्वास फैल रहा है, जरा-सा शुद्ध प्रेम भी सूखी जमीनमें हरियालीकी तरह शोभा देता है। यदि ईदकी बधाईके पत्रोंमें सच्चा प्रेम है तो उसका चिह्न यह है कि मुझे पत्र भेजनेवाले भाई ऐसे काम करें जिनसे हिन्दुओं और मुसलमानोंमें प्रेम-भाव बढ़े। मैं आशा रखता हूँ कि मुझे पत्र भेजनेवाले भाई जहाँ-तहाँ सुगन्धके बीज बोते रहेंगे।

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