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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जाति-सुधार

जाति-सुधारमें सत्याग्रहका उपयोग किस प्रकार किया जा सकता है इस विषयमें मैंने ‘नवजीवन' में जो लेख लिखा है उसे पढ़कर कुछ ‘नवजीवन' प्रेमी चाहते हैं कि मैं 'नवजीवन' में जाति-सुधारको अधिक पल्लवित करूँ। इधर कुछ दूसरे लोगोंको भय है कि अब मेरा राजनैतिक काण्ड खतम हुआ और मैं राजनैतिक हलचलको समाज-सुधारका रूप देना चाहता हूँ। मैं जाति-सुधारके सवालको ‘नवजीवन' में प्रधानता नहीं दे सकता। ‘नवजीवन’ का उद्देश्य है स्वराज्य। ‘नवजीवन' का अस्तित्व केवल उसीके लिए है। समाज-सुधार मुझे प्रिय है। परन्तु मेरे पत्र-सम्पादनके वर्तमान कार्यसे उसका कोई भी सम्बन्ध नहीं है। जाति-सुधारका बहुत-सा काम व्यक्तियोंके जीवनसे और उदाहरणसे हो सकता है। परन्तु मैं समाज-सुधारको राजनीतिसे भिन्न नहीं मानता। जिस प्रकार नीति और धर्म राजनीतिमें अवश्य होने चाहिए उसी प्रकार समाज-सुधारके विषयमें भी कहा जा सकता है। जिस समाजकी भीतरी व्यवस्था दूषित है वह स्वराज्य प्राप्त नहीं कर सकता। अतएव मौका पड़नेपर ऐसे सुधारकी चर्चा भी ‘नवजीवन’ में की जा सकती है। सच पूछिए तो अस्पृश्यता-निवारण समाज-सुधारका प्रश्न है। परन्तु वह इतना व्यापक और आवश्यक है कि अब हम यह मानने लगे हैं कि उसका निपटारा किये बिना स्वराज्य मिलना ही असम्भव है। परन्तु जो सुधारक केवल जाति-सुधारके ही प्रश्नका विचार करते है उन्हें ‘नवजीवन' की मर्यादा समझनी चाहिए और जिन लोगोंको यह डर है कि ‘नवजीवन' स्वराज्य आन्दोलनको ताकपर धर देगा, उन्हें मेरे पूर्वोक्त विचारोंपर ध्यान देकर भय-मक्त हो जाना चाहिए।

जाति-भोज

यह शादियोंका महीना है। विवाहके सिलसिले में जाति-भोज आदिमें बहुत खर्च किया जाता है। जिनके पास रुपया है वे जाति-भोज आदिमें खर्च न करें, यह कहना कुछ ज्यादती होगी। परन्तु ऐसे भोज अनिवार्य मान लिये गये हैं और इसलिए गरीब लोगोंपर उसका बोझ असह्य हो गया है। ऐसे भोज ऐच्छिक होने चाहिए――यही नहीं, खुद धनी लोगोंको मितव्ययी बनकर गरीबोंके सामने मिसाल पेश करनी चाहिए। यदि इससे बचा हुआ रुपया शिक्षा-प्रचार अथवा समाज या जातिके हितके अन्य कामोंमें लगाया जाये तो इससे जाति तथा सारे देशको लाभ हो। विवाहके समय जाति-भोजकी प्रथा बन्द करना केवल इष्ट है, परन्तु मृत्युके बाद किये जानेवाले जाति-भोजको बन्द करना आवश्यक है। मैं तो मृत्युके पश्चात् किये जानेवाले जाति भोजको पापरूप मानता हूँ। मुझे इस भोजमें कुछ भी तत्त्व दिखाई नहीं देता। भोज आनन्दका प्रसंग माना गया है। मृत्यु शोकका अवसर है। समझमें नहीं आता, ऐसे समय भोज किस प्रकार दिया जा सकता है। सर चिनूभाईके

१. देखिए खण्ड २३, पृष्ठ ४६१-६५

२. सर चिनूभाई माधवलाल, अहमदाबादके नगर-नेता।