पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दिलमें पूरा विश्वास होना चाहिये कि दैवी प्रकृतिको हि सहाय देना हमारा कर्तव्य है। मुझे फिकर आपके पिता और बंधुके लीये है। यदि वे आपके पक्षका संगठन कर संग्राम चाहते हैं और आप उनको शान्ति मार्ग की ओर न ला सकें तो आपके हि कुटुम्बमें दो विरोधी प्रवृत्ति होने का सम्भव है। ऐसे मौकेपर धर्मसंकट खड़ा होता है। मैं तो अवश्य उनसे भी प्रार्थना करूँगा कि आपके हि हाथसे जातिमें दो गिरोह पेदा न हों।

जिस चीजको आपने अच्छी समझ कर की है और जिसकी योग्यताके लिये आज भी आप लोगोंके दिलमें शंका नहि है उसके लिये माफी मांगना मै हरगीज उचित नहीं समझूँगा।

आपकी तरफसे मुझे रु० ५,००० मील गये हैं। ‘यंग इंडिया', ‘नवजीवन', इत्यादिके लीये आप उचित समझें इतना द्रव्य भेज दें। करीब ५० नकल मुफ्त देने की आवश्यकता है।

आपका,
मोहनदास गांधी
१४-५-१९२४

मूल हिन्दी पत्र (सी० डब्ल्यू० ६००४) से।

सौजन्य : घनश्यामदास बिड़ला

२१. तार: हकीम अजमल खाँको

[अन्धेरी
१३ मई, १९२४ या उसके पश्चात्]

हकीम अजमल खाँ साहब,

अधिक परिश्रम करनेसे कमज़ोरी बढ़ी; वैसे बहुत ठीक है। आशा है बेटीको वायु-परिवर्तनसे लाभ हो रहा होगा।

गांधी

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ८८०१) की फोटो-नकल से।

१. यह तार हकीम अजमल खाँ के १३ मई, १९२४ के निम्नलिखित तारके जवाबमें दिया गया था: “जब पिछली बार आपसे मिला था उसके बाद आपका स्वास्थ्य कैसा चल रहा है, लिखनेको मेहरबानी कीजिए।"