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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
(ख) ३-१२-१९२३ से लेकर १३-१२-१९२३ तक वे मलेरियासे बीमार रहे और इस अवधिमें उनकी खुराक दूध रही।
(ग) बुखार टूटनेपर १४-१२-१९२३ से २८-१२-१९२३ तक वे धीरे-धीरे पूर्ण स्वस्थ हो गये। इस अवधिमें उन्हें आम खुराक दी गई और उसमें वालकी जगह प्रतिदिन एक पौंड दूध दिया गया।
(घ) २८-१२-१९२३ से ४-१-१९२४ तक आम खुराक।
(च) बदहजमी हो जाने के कारण, ५-१-१९२४ से लेकर १७-१-१९२४ तक आम खुराकके बदले चावल दिया गया।
(छ) १८-१-१९२४ से २९-१-१९२४ तक आम खुराक।
(ज) ३०-१-१९२४ से १७-२-१९२४ अर्थात् उनके रिहा होनेके दिन तक, उनको खुराक दूध, एक औंस मक्खन और डबल रोटी रही।

आपका विश्वस्त,

७-५-१९२४
(ह.) अस्पष्ट
 
बम्बई
कार्यवाहक सूचना-निदेशक
 

उक्त पत्र छापते हुए मुझे खुशी होती है। अभी श्री मजलीके स्वास्थ्यकी जो स्थिति है, उसे देखते हुए मैं उन्हें कोई कष्ट नहीं देना चाहता और जैसा कि मैंने अपनी टिप्पणीमें भी कहा था, मेरा ऐसा भी कोई इरादा नहीं था कि श्री मजलीके प्रति किये गये व्यवहारको लेकर शिकायत करूँ। लेकिन मैं इतना अवश्य कहूँगा कि श्री मजलीकी दो बातें लगभग सही हैं। श्री मजली इस बातसे इनकार नहीं करते कि उन्हें “बाट-कताई”का काम दिया गया। लेकिन, “बाट-कताई” का मतलब होता है “सूतकी बटाई।" कार्यवाहक सूचना निदेशकको शायद मालूम नहीं कि “बाट-कताई" जैसी कोई प्रक्रिया नहीं होती। चरखेपर या तो सूत काता जा सकता है या बटा जा सकता है। श्री मजली सूत कातना चाहते थे। यह उनका कर्तव्य भी था और इसमें उन्हें आनन्द भी आता। लेकिन उन्हें सूतकी बटाईका काम दिया गया, जो कताईके कामसे बहुत कठिन था और जिसमें उन्हें कोई आनन्द भी नहीं आता था। उन्हें कालकोठरीमें बन्द करके रखा गया, यह बात भी स्पष्टतः सत्य ही है। यदि उनके साथ दो और लोग थे तो इससे इस तथ्यमें कोई फर्क नहीं पड़ता। कालकोठरीमें, खासकर दिनमें कोई साथी हो या न हो बन्द किये जानेका मतलब क्या होता है, यह तो कोई भुक्तभोगी कैदी ही बता सकता है।

सरोजिनी देवीकी ओरसे

श्रीमती सरोजिनी नायडूने मुझे पत्र भेजा है, उसे पाठकोंके लिए नीचे दे रहा हूँ। आशा है, उन्हें यह पत्र पढ़कर प्रसन्नता होगी। पत्र इस प्रकार है:

हिन्द महासागर बाल-रविकी स्तुतिमें अत्यन्त पुरातन श्लोक गुनगुना रहा है और ये पर्वत साक्षी हैं उस प्रतिज्ञाके जो महान् स्वप्नशियोंके इन पर्वतोंके