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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


है कि शक्ति-प्रदर्शनके बलपर कोई भी सुधार सम्भव नहीं है। मैं जानता हूँ कि पंच-फैसलेके लिए दो पक्षोंका होना जरूरी है। अगर दूसरा पक्ष सहमत न हो तो असहयोगी लोग तो ब्रिटिश न्यायालयोंका आश्रय नहीं लेंगे। किन्तु यदि उसे इन दो स्थितियोंके बीच चुनाव करना हो तो वह शक्तिका प्रदर्शन करे या न्यायालयकी शरणमें जाये――अर्थात् अगर वह उस चीजको, जिसे वह अपना अधिकार समझता है, कुछ कालके लिए बलिदान करनेको तैयार न हो――तो मैं बेहिचक कहूँगा कि शक्ति-प्रदर्शन द्वारा अपना उद्देश्य सिद्ध करनेके बजाय उसे न्यायालयकी ही शरण लेनी चाहिए――भले ही वह ब्रिटिश न्यायालय क्यों न हो।

धार्मिक निष्ठासे कताई करना

श्री पी० डब्ल्यू सिबस्तियन, जो वाइकोम सत्याग्रहके कैदी हैं, त्रिवेन्द्रम सेन्ट्रल जेलसे लिखते हैं:

कई महीनेसे आपका कोई पत्र नहीं मिला। कोचीनमें अपने जेलके अनुभव आपको लिख भेजनेका मुझे समय नहीं मिला और इसी बीच एकाएक मैं त्रावणकोर जेल भेज दिया गया। आपको मालूम होगा कि कोचीन सरकारन मुझे सुरक्षाकी दृष्टिसे छ: मासकी सजा दी थी और यह सजा काटकर जेलसे आये दो महीने भी नहीं हो पाये थे कि वाइकोम सत्याग्रहके सिलसिलेमें श्रीयुत जॉर्ज जोजेफ और अन्य लोगोंके साथ मुझे गिरफ्तार कर लिया गया और छः महीनेकी सादी कैदकी सजा दे दी गई। मेरे और मेरे कुछ मित्रोंसे राजनीतिक कैदियों-जैसा व्यवहार किया जाता है और अधिकारीगण हमारी सभी जरूरतों और सुख-सुविधाओंका खयाल रखते हैं। हमें काफी बड़े-बड़े कमरे दिये गये हैं और उनमें खाटें, बिस्तर, मेज-कुसियाँ, लेखन-सामग्री, पुस्तकें और अखबार, सभी कुछ दिया गया है। हमें अपने कपड़ोंका उपयोग करने की छूट दी गई है और हम खद्दरका उपयोग कर रहे हैं। जेलमें हमारे चरखे हमारे पास हैं और हममें से कुछ लोग निष्ठापूर्वक कताईका काम करते हैं। अधिकारीगण बड़े कृपालु हैं और हमारी सुविधाका बड़ा ध्यान रखते हैं।

अपनी अन्तरात्माकी आवाजपर जेल जानेवाले इन कैदियोंके साथ सद्व्यवहार करने के लिए मैं त्रावणकोर राज्यको बधाई देता हूँ। मुझे आशा है कि कुछ-एक नहीं, बल्कि सभी सत्याग्रही पूरी निष्ठाके साथ चरखा चलायेंगे। उन्हें मैं धुनना सीखने और अगर अनुमति हो तो बुनना सीखने की भी सलाह देता हूँ। अगर वे अपने अवकाशका एक-एक मूल्यवान् क्षण धुनाई, कताई और बुनाईमें लगायें तो वे यह सब सीख सकते हैं।

मोपलों के लिए राहत

मुझे पाठकोंको यह सूचित करते हुए खुशी होती है कि मेरी अपीलकी ओर ध्यान देनेवालोंमें सबसे पहले व्यक्ति एक बोहरा सज्जन हैं, जिन्होंने ५०० रुपयेका