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एक चेक भेजा है। मैंने यह रकम श्री याकूब हसनको भेज दी है। दूसरी रकम एक विधवा बहनने भेजी है। वह १० रुपये हैं। उसकी सखीने २ रुपये दिये हैं। एक और हिन्दूने मद्राससे १० रुपये भेजे हैं। ‘यंग इंडिया’ कार्यालयमें बरेलीके एक हिन्दू भाईकी तरफसे ५ रुपयेकी एक और राशि आई है।

लालाजीका पत्र

लाला लाजपतरायने अपनी यात्राके दौरान जहाजसे एक पत्र मुझे भेजा है। वे इसमें लिखते हैं:

जहाजपर सवार होते वक्त अहिंसाका जो चिह्न मैं धारण किये हुए था उसपर मेरी समुद्र-यात्राके पहले ही दिन हिंसात्मक प्रहार किया गया। जहाजपर लगभग बीस भारतीय हैं। जब हम जहाजपर चढ़े तब हममें से केवल दो ही यात्री गांधी टोपी पहने हुए थे। सबकी आँखें हमारी ओर थीं और कुछके चेहरोंसे रोष भी झलक रहा था। भोजनके समय मैंने अपनी टोपी बाहर टोप टाँगनेकी खूँटीपर रख दी थी। भोजनके बाद जब मैंने उसे ढूँढा तो वह मुझे नहीं मिली। वह गायब हो गई थी। चुरानेके लायक तो वह थी नहीं, इसलिए इसका अर्थ यही निकाला जा सकता है कि वह समुद्र में फेंक दी गई थी। मुझे इसका दुःख नहीं है, क्योंकि फेंकनेवालेको इससे अवश्य ही सन्तोष मिला होगा। किन्तु मैंने टोपी पहनना बन्द न करनेका संकल्प कर लिया। अतः मैंने कल फिर दूसरी टोपी सैलूनके बाहर उसी जगह रख दी। किन्तु इस बार उसे किसीने हाथ नहीं लगाया और इसलिए फिलहाल इस काण्डको समाप्त समझिए।

मुझे अपनी तबीयत पहलेसे अच्छी मालूम दे रही है। ठंडी समुद्री हवा और आरामसे लाभ मिल रहा है। मैं चाहता हूँ कि आप भी अपनी जिम्मेदारियाँ छोड़कर हिन्दुस्तानसे बाहर जाकर कुछ दिनों पूरा विश्राम करें। यह स्पष्ट है कि खद्दरकी टोपीको अभी कई जोरदार लड़ाइयाँ लड़नी पड़ेंगी।

‘यंग इंडिया’ और ‘नवजीवन’

एक पत्र-लेखकने मुझे ‘नवजीवन’ प्रेसके मुनाफेके ५०,००० रुपये खद्दर- उत्पादनके लिए दे देने के सम्बन्धमें एक पत्र लिखा है। उसका कहना है, मुनाफेसे पता चलता है कि इन साप्ताहिकोंके मूल्यमें खासी कमी की जा सकती है और वे अधिक लोगोंके लिए सुलभ किये जा सकते हैं। मैं इस पत्रके अंश नीचे देता हूँ:

अभी कुछ दिन पहले अखबारोंमें खबर दी गई थी कि नवजीवन प्रेसमें ५०,००० रुपया मुनाफा हुआ है और यह रकम किसी लोकोपकारके कार्यमें खर्च की जायेगी। इससे मालूम होता है कि ईश्वरकी कृपासे प्रेसमें घाटा नहीं है और इसपर प्रबन्धकोंको बधाई दी जानी चाहिए।