पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५५
साम्राज्य के मालका बहिष्कार

५. दूसरे कामसे मुनाफा कमाकर सस्ता अखबार छापनेकी नीति ठीक नहीं होती। मैं चाहता हूँ कि पाठक इन पत्रोंका खर्च निकालने में उतनी ही दिलचस्पी लें जितनी व्यवस्थापक और सम्पादक लेते हैं।

६. पाठकोंके लिए सस्ता अखबार लेने की अपेक्षा उनको मुनाफेमें सीधा हिस्सेदार बना लेना अधिक अच्छा है।

७. यदि कुछ लोग ऐसे हैं जो मूल्य अधिक होने से पत्रोंको नहीं खरीद सकते हैं तो वे समृद्ध ग्राहक, जो इन पत्रों द्वारा प्रस्तुत विचारधारा और नीतियोंके प्रचारमें रुचि रखते है, चाहे जितनी प्रतियाँ मँगा लें और यदि प्रतियोंकी यह संख्या अधिक हुई तो निश्चय ही वे दाम घटाकर दी जायेंगी।

८. उपरोक्त क्रममें दिये गये सुझावको देखते हुए अधिक मूल्यका प्रश्न महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि लोगोंको मुनाफेकी एक-एक पाईका लाभ मिलता है।

९. पत्रोंका आकार बढ़ाना ठीक नहीं है। किसी अन्य कारणसे नहीं तो कमसे-कम इस कारणसे कि मेरी शक्ति सीमित है और मेरे पत्रोंकी महत्वाकांक्षा भी सीमित है। लोगोंको इस समय मेरी साप्ताहिक चिट्ठी जितनी लम्बी मिल रही है, उससे बड़ी चिट्ठीको उन्हें दरकार नहीं है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १५-५-१९२४

२७. साम्राज्यके मालका बहिष्कार

विचित्र बात है कि साम्राज्यके मालके बहिष्कारका प्रश्न बीच-बीचमें उठता ही रहता है। अहिंसात्मक असहयोगकी दृष्टि से मुझे तो यह चीज ऐसी लगती है कि जिसके पक्षमें कुछ भी नहीं कहा जा सकता। यह तो खालिस बदलेकी भावना है और इसलिए इसमें दण्ड देने का भाव निहित है। इसलिए जबतक कांग्रेस अहिंसात्मक असहयोगपर कायम है तबतक दूसरे देशोंके मालको छोड़कर सिर्फ ब्रिटेनके मालके बहिष्कारका हमारे कार्यक्रममें कोई स्थान नहीं हो सकता और यदि ऐसा विचार रखनेवाला मैं ही एकमात्र कांग्रेसी हूँ तो फिर अगली कांग्रेसमें मुझे इस आशयका प्रस्ताव पेश करना ही होगा कि पिछले विशेष अधिवेशनमें इस विषयपर स्वीकृत प्रस्तावको रद कर दिया जाये।

लेकिन इस समय में प्रतिहिंसात्मक बहिष्कारकी नैतिकतापर नहीं, उसकी उपयोगितापर विचार करना चाहता हूँ। हम जानते हैं कि इस बहिष्कार अभियानमें नरमदलीय लोग भी शामिल थे किन्तु यह तथ्य भी उसकी उपयोगिताके सवालकी जाँच न करनेका कारण नहीं बन सकता। इसके विपरीत, यदि मेरी ही तरह वे भी यह मानने लगें कि उन्होंने और कांग्रेसवालोंने जो प्रतिहिंसात्मक बहिष्कारका रास्ता अपनाया था, वह न केवल प्रभावहीन साबित हुआ बल्कि उससे हमारे थोथे क्रोध और बहुमूल्य शक्तिके अपव्ययका एक और उदाहरण भी सामने आया तो मैं उनसे