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साम्राज्यके मालका बहिष्कार

हमें अपने बहिष्कारके प्रस्तावपर शर्म आनी चाहिए। जब हम अंग्रेजी पुस्तकों और दवाओंके बिना अपना काम नहीं चला सकते तो क्या इंग्लैंडकी घड़ियोंका बहिष्कार सिर्फ इसीलिए करना ठीक है कि हम घड़ियाँ जेनेवासे प्राप्त कर सकते है? और जब हम सिर्फ इसलिए अंग्रेजी पुस्तकोंके बिना अपना काम चलानेके लिए तैयार नहीं हैं कि उनकी हमें जरूरत है तो फिर हम इंग्लैंडसे घड़ियों और इत्रोंका आयात करनेवाले व्यक्तिसे अपने व्यापारके बलिदानकी आशा कैसे कर सकते हैं? मेरी बीमारीके दिनोंमें मेरी परिचर्याके लिए एक बहुत ही चुस्त और कुशल अंग्रेज नर्स थी। उसे मैं “जालिम” कहा करता था, क्योंकि वह बराबर बहुत ही स्नेहके साथ मुझसे, मैं जितना खाता और सोता था, उससे ज्यादा सोने और खाने के लिए आग्रह करती रहती थी। जब एक हाउस-सर्जन तथा उस नर्सने मुझे सही-सलामत एक खानगी वार्डमें पहुँचा दिया तब उसने अपने होठोंपर एक कुटिल मुस्कान लाकर आँखें चमकाते हुए कहा, “जब मैं आपके ऊपर छाता ताने आपके साथ चल रही थी, उस समय आपपर मुझे यह सोचकर बरबस हँसी आ गई कि आप ब्रिटेनकी हर चीजका ऐसा प्रबल बहिष्कार करनेवाले व्यक्ति हैं और फिर भी शायद एक अंग्रेज सर्जनकी शल्यकुशलता और एक अंग्रेज नर्सकी परिचर्याके कारण ही आपकी जान बच सकी है। और उस सर्जनने शल्य-चिकित्साके जिन औजारों और जिन दवाओंका प्रयोग किया था, वे इंग्लैंडके ही बने हुए थे। और क्या आपको मालूम है कि आपको यहाँ लाते समय आपके ऊपर जिस छातेसे मैंने छाया कर रखी थी वह भी इंग्लैंडका ही बना हुआ है?" जब उस भली नर्सने विजय-गर्वके साथ अपना यह आखिरी वाक्य पूरा किया तो स्पष्टतः वह यही आशा कर रही थी कि यह स्नेहपूर्ण प्रवचन सुनकर मैं तो हक्का-बक्का रह जाऊँगा। लेकिन सौभाग्यसे मैंने यह कहकर उसके सारे आत्मविश्वासको व्यर्थ कर दिया: “आप लोग वस्तुस्थितिको यथार्थ रूपमें देखना कब शुरू करेंगे? क्या आपको मालूम नहीं है कि मैं किसी भी चीजका बहिष्कार सिर्फ इसलिए नहीं करता कि वह ब्रिटेनकी है? मैं तो केवल विदेशी कपड़ोंका बहिष्कार करनेको कहता हूँ, क्योंकि भारतको विदेशी कपड़े से भर देनेके परिणामस्वरूप मेरे करोड़ों देशभाई दरिद्र हो गये हैं।" और इस तरह मैं उसमें खद्दर आन्दोलनके प्रति भी रुचि पैदा करने में सफल हुआ। वह शायद खद्दरकी समर्थक भी बन गई। जो भी हो, खद्दरके औचित्य, आवश्यकता और उपयोगिताको वह समझ गई, लेकिन सभी अंग्रेजी मालके सर्वथा प्रभावहीन और निरर्थक बहिष्कारपर तो वह हँस ही सकती थी। (उसका हँसना ठीक ही था)।

यदि प्रतिहिंसात्मक बहिष्कारके ये समर्थक अपने घरों और माल-असबाबपर नजर डाले तो मुझे कोई सन्देह नहीं कि जिस प्रकार मेरी नर्स मित्रने इस भ्रममें पड़कर कि मैं भी उसी बहिष्कारवादी विचारधाराका हूँ, मेरी स्थितिके भोंडेपनको स्पष्ट लक्षित किया था, उसी प्रकार उन्हें भी अपनी स्थितिके भोंडेपनका भान हो जायेगा।

हमारे केनियावासी देशभाइयोंके साथ न्याय हो और हमें जल्दीसे-जल्दी स्वराज्य मिल जाये, इस भावनाका मैं किसीसे कम समर्थक नहीं हूँ। लेकिन मैं जानता हूँ कि कोधके वशीभूत होकर धैर्य खो बैठने से हमारे उद्देश्यकी ही हानि होगी। तब