पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

था, इसलिए उसके लिए मुझे छूनेका भी कोई कारण नहीं था। फिर भी उसने एक बार मेरी कमर इत्यादिको टटोलकर मेरी जरूर तलाशी ली, उसके बाद मेरे कम्बलों और दूसरी चीजोंको उलट-पलट कर देखा और जूतेसे मेरे तसलेको हटाया। यह सब मुझे असाह्य हुआ जा रहा था और मैं क्रोधके वशीभूत हो जाता, परन्तु सौभाग्यसे मैंने अपनेपर काबू पा लिया और उस नौजवान जेलरसे कुछ नहीं कहा। फिर भी, इस आदमीके बरतावके बारेमें रिपोर्ट की जाये या नहीं, यह सवाल मनमें बना रहा। यह घटना यरवदा जेलमें भरती होने के बहुत दिन बादकी है, इसलिए यदि मै उसके विरुद्ध रिपोर्ट करता तो उसके इस बरतावके लिए सुपरिटेंडेंट अवश्य ही सख्त नाराजी जाहिर करता। अन्तमें मैं इस निश्चयपर पहुँचा कि रिपोर्ट न की जाये। मुझे महसूस हुआ कि ऐसे व्यक्तिगत अपमान और अशिष्टताको पी ही जाना चाहिए। मैं उसके खिलाफ शिकायत करूँ तो कदाचित् उसकी नौकरी भी चली जाये। इसलिए ऐसा करने के बजाय मैंने उसके साथ बात की। मैंने उससे कहा कि उसकी उद्धतता मुझे कितनी खटकी है और किस प्रकार मुझे पहले उसके विरुद्ध रिपोर्ट करनेका विचार आया था और अन्तमें यह सब करना छोड़कर किस प्रकार मैंने सिर्फ उसीके साथ बात करके मामला खत्म करनेका निश्चय किया है। मेरा उससे इस तरह बात करना उसे बहुत अच्छा लगा और उसने कृतज्ञताका अनुभव किया। उसने यह भी स्वीकार किया कि उसने अनुचित व्यवहार किया था; यद्यपि उसने कहा कि इसमें मेरी भावनाओंको चोट पहुँचानेका उसका कोई मंशा नहीं था। उस दिनके बादसे उसने मुझे कभी परेशान नहीं किया। सब कैदियोंके प्रति उसका आम व्यवहार सुधरा या नहीं, इसका मुझे पता नहीं है।

परन्तु सबसे बड़ा और अद्भुत परिणाम तो आया, कोड़ोंकी सजाओं और उपवासोंके प्रसंगोंमें मेरे बीचमें पड़नेपर। पहले-पहल आजीवन कैदकी सजावाले सिख कैदियोंने उपवास किये। उन्होंने ठान ली थी कि जबतक उन्हें उनके कच्छ, जो उनके लिए धर्मकी रूसे अनिवार्य वस्त्र हैं, वापस नहीं दे दिये जाते और उन्हें अपना भोजन खुद बनानेकी अनुमति नहीं मिल जाती तबतक वे निराहार रहेंगे। इस उपवासका पता चलते ही मैंने उनसे मिलनेकी इजाजत माँगी, परन्तु इजाजत नहीं दी गई। अधिकारियोंकी दृष्टिमें वह जेलकी प्रतिष्ठा और अनुशासनका प्रश्न था। असलमें यदि कैदियोंको बाहरके मनुष्योंकी तरह ही भावनाशील प्राणी माना जाये तो इसमें उपर्युक्त दोनों बातोंमें से एक भी बातका सवाल नहीं उठता। मुझे विश्वास है कि यदि उनसे मिलनेकी अनुमति मुझे दे दी गई होती तो अधिकारी बहुत-सी कठिनाइयों और परेशानियोंसे बच जाते और सार्वजनिक धनकी भी बचत होती। इतना ही नहीं, वे सिख कैदी अपने लम्बे कष्टपूर्ण उपवासोंसे बच जाते। परन्तु मुझे कहा गया कि मैं उन सिख कैदियोंसे मिल न सकूँ तो भी उन्हें “बेतारके तार" से अपना सन्देश भेजनेमें मुझे कोई बाधा नहीं होगी। “बेतारके तार" शब्दोंका अर्थ मैं यहाँ समझा दूँ। जेलकी भाषामें इस ‘बेतारके तार' से सन्देश भेजनेका अर्थ होता है अधिकारियोंकी जानकारीमें अथवा उनकी जानकारीके बिना अनधिकृत रूपमें एक कैदीका दूसरे कैदीको सन्देश भेजना। सारे अधिकारी जेलमें ऐसे सन्देशोंके आने-जानेकी बात जानते हैं