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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं श्री बापटके नाम अलगसे पत्र नहीं भेज रहा हूँ; क्योंकि इस सम्बन्ध में लिखे गये पत्रोंमें अन्तिम पत्र आपका ही था।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत न० चि० केलकर
पूना
[संलग्न]

लोकमान्य तिलकके संस्मरण

लोकमान्यसे मेरी सर्वप्रथम भेंटके अवसरकी सब बातें मुझे भली-भाँति याद हैं। यह १८९४ की बात है। उन दिनों मुझे भारतमें इक्का-दुक्का लोग ही जानते थे मैं दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंके मामलेको लेकर एक सार्वजनिक सभाका आयोजन करने के लिए पूना गया था। मैं पूनाके लिए एक नितान्त अपरिचित व्यक्ति था और वहाँके सार्वजनिक नेताओंको केवल नामसे जानता था। श्री सोहोनी जो मेरे भाईके मित्र थे और जिनके यहाँ में ठहरा था मुझे लोकमान्यके पास ले गये। उनके व्यवहारसे मेरी हिचक दूर हो गई और फिर जब उन्होंने मुझसे मेरे आनेका कारण पूछा तो मैंने तुरन्त उन्हें अपना उद्देश्य बता दिया; लोकमान्यने कहा: “अच्छा! तब तो आप पूनामें एक अजनबी-जैसे हैं, आप यहाँके सार्वजनिक नेताओंको नहीं जानते और न आपको स्थानीय मतभेदोंके बारेमें ही कुछ मालूम है। किन्तु मैं आपको बता देना चाहता हूँ कि यहाँ दो राजनीतिक संस्थाएँ बारे एक तो ‘डेकन सभा' है और दूसरी है ‘सार्वजनिक सभा'। दुर्भाग्यवश दोनों संस्थाएँ एक मंचपर साथ-साथ नहीं आतीं। सभाका आयोजन दोमें से कोई एक संस्था भी करे तो भी आपके उद्देश्यके प्रति तो सबकी सहानुभूति होनी ही चाहिए। इसलिए, इस सभाका सम्बन्ध किसी एक राजनीतिक संस्थासे न जोड़ा जाये। अच्छा हुआ जो आप मुझसे मिलने आ गये। आप श्री गोखलेसे भी मिल लें, वे भी ‘डेकन सभा' से सम्बद्ध हैं। मुझे विश्वास है कि आपको वे भी यही सलाह देंगे, जो मैंने दी है। आपको ऐसी सभा करनी चाहिए, जिसमें सभी दल शामिल हों। आप श्री गोखलेको सूचित कर सकते हैं कि मेरी ओरसे कोई अड़चन नहीं डाली जायेगी। इस प्रकारकी सभाके लिए हमें अध्यक्ष ऐसा चुनना होगा जो निष्पक्ष, विख्यात एवं प्रभावशाली हो। पूनामें डा० भण्डारकर इस प्रकारके व्यक्ति हैं। इसलिए आप उनसे भी मिल लें और आपसे जो-कुछ मैंने कहा है तथा जो-कुछ श्री गोखले कहेंगे वह सब उनसे कह दें और उन्हें अध्यक्ष बनने के लिए आमन्त्रित करें। वे सार्वजनिक जीवनसे प्रायः निवृत्त हो चुके हैं। वे संकोच करें तब भी उनसे आग्रह कीजिएगा। आपका उद्देश्य बहुत ही न्यायोचित है। वह उन्हें पसन्द जरूर आयेगा। यदि आप उन्हें अध्यक्ष बनने के लिए राजी कर सके तो बाकी सब काम सरल हो जायेगा। जो निर्णय हो उसे मुझे समय रहते सूचित कर दीजिये;

१. यह १८९६ होना चाहिए, देखिए खण्ड २, पृष्ठ १४७।

२. गोपाल कृष्ण गोखले।