पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/१३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
सात

रखनेके लिए बड़ी खींच-तान शुरू हो गई थी। गांधीजीने इसपर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा: "देशमें इस समय जो घरेलू झगड़ा चल रहा है, उससे मैं अब बहुत परेशान हो गया हूँ।" (पृष्ठ ६९)। उनका निश्चित मत था कि स्वराज्यवादियोंका कार्यक्रम देशके आन्तरिक विकासके लिए बाधक है, लेकिन अब उसका विरोध करनेकी उनकी कोई इच्छा नहीं रह गयी थी। ६ सितम्बरको च० राजगोपालाचारीको उन्होंने लिखा: "मुझे तो दिनके उजालेकी तरह स्पष्ट नजर आ रहा है कि हमारे कार्यकर्ताओंमें जो बुराई घर कर गई है, हमें उसका सीधा प्रतिरोध नहीं करना चाहिए। हमें पूर्णरूपसे सत्ताका परित्याग कर देना चाहिए। अगर अपने उद्देश्यमें हमारी आस्था है, तो हमें सफलता मिलनी ही चाहिए।" (पृष्ठ १०५)। लेकिन आम परिवर्तनवादी सदस्योंको यह रवैया ठीक नहीं लगा। उन्होंने इसे आत्मसमर्पण कहा। मगर गांधीजीका उद्देश्य भी तो आत्म-समर्पण ही था। 'यंग इंडिया' में अपनी स्थितिपर प्रकाश डालते हुए उन्होंने लिखा: "अब मेरे अन्दर संघर्षका भाव बिलकुल नहीं रह गया है। मैं एक जन्मजात लड़ाका हूँ। मेरे लिए इतना ही कहना बहुत है। मैं अपने सर्वाधिक प्रिय जनोंतक से लड़ा हूँ। पर मैं लड़ा हूँ प्रेम-भावसे प्रेरित होकर ही। स्वराज्यवादियोंसे भी प्रेम-भावसे प्रेरित होकर ही लड़ा जा सकता है। पर मैं देखता हूँ कि पहले मुझे अपने प्रेम-भावको साबित करना होगा। मैं समझता था कि मैं इसे साबित कर चुका है। लेकिन देखता हूँ कि नहीं, मैं गलती पर था। इसीलिए मैं अपने कदम वापस ले रहा हूँ।" (पष्ठ १३२)। और फिर "प्रेमका नियम" शीर्षक लेखमें उन्होंने कहा: "मुझे हरएकको दिखा देना चाहिए कि मैं जो कहता हूँ, वही हूँ---अर्थात् मैं हरएकका मित्र और सेवक हूँ।" (पृष्ठ २७९)। जब गांधीजी स्वराज्यवादी दलसे समझौता करनेके उद्देश्यसे मोतीलाल नेहरूसे वार्ता चला रहे थे, तभी बंगालमें सरकारी दमनका चक्र जोरोंसे चल पड़ा और बहुतसे लोग बिना मुकदमा चलाये ही जेलोंमें बन्द कर दिये गये। कांग्रेसके अन्दर एकताकी आवश्यकता और भी बढ़ गई, क्योंकि अब उसे एक ऐसा अनुशासित संगठन बनाना था जो वक्तके हर तकाजेका सही जवाब दे सके। निदान ६ नवम्बरको कलकत्तामें गांधीजी और स्वराज्यवादी नेताओंके बीच समझौता हो गया। इसके अनुसार तय पाया गया कि स्वराज्यवादी दलको अपना कौंसिल-कार्यक्रम कांग्रेसके नामपर चलानेकी छूट दी जायगी और बदलेमें वह रचनात्मक कार्यक्रम तथा कांग्रेसकी सदस्यताकी योग्यताके रूपमें प्रतिदिन सूत कातनेके नियमको दाखिल करनेका समर्थन करेगा। अन्य दलोंको कांग्रेसके भीतर एक मंचपर लानेके उद्देश्यसे समझौतेमें यह प्रस्ताव भी रखा गया कि असहयोग आन्दोलनके अंगके रूपमें जो विभिन्न बहिष्कार आरम्भ किये गये थे, उनमें से विदेशी वस्त्रोंके बहिष्कारको छोड़कर अन्य सबको स्थगित कर दिया जाये। २३ नवम्बरको बम्बईमें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी बैठकमें इस समझौतेको उचित ठहराते हुए गांधीजीने कहा: "मैं एक तरहसे यह स्वीकार करता हूँ कि असहयोगकी लड़ाईका या सविनय अवज्ञा आन्दोलनका नेतृत्व करना मैं तबतक असम्भव समझता हूँ जबतक हमारे साथ देशका....प्रबुद्ध लोगोंका एक ऐसा बहुत बड़ा समूह न हो, जिसकी सहानुभूति हमारे पक्षमें हो और यहाँतक कि वह