पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/१५

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नौ

आश्वस्त करते हुए कहा: "यह समिति सभी दलोंको एकताके सूत्रमें बाँधनेके लिए जो भी समुचित उपाय करना वांछनीय समझेगी, मैं उसके रास्तेमें हठपूर्वक कोई बाधा नही डालूँगा।...मैं बहुत विनम्रतापूर्वक उनके दृष्टिकोणको जानने-समझानेका प्रयास कर रहा हूँ। इसमें मेरा अपना कोई निजी उद्देश्य तो है नहीं। ...तो सभी दल ऐसा रास्ता ढूँढ़ निकालनेके लिए ईमानदारी और लगनके साथ कोशिश करें। एक संयुक्त मंच खोज निकालनेके लिए वे समितिकी कार्यवाहीके प्रति विश्वास और संकल्पका रवैया अपनायें।" (पृष्ठ ३८८)।

गांधीजीको आगामी कांग्रेसका अध्यक्ष चुना गया। उन्होंने ईश्वरका निर्देश पानेके लिए बहुत प्रार्थना और आत्म-चिन्तन करनेके बाद ही इस सम्मानको स्वीकार किया। उन्होंने कहा, "मेरे और... भारतके समस्त शिक्षित समुदायके बीच भेदकी जबरदस्त खाई दिखाई दे रही है और...देशका पूरा बौद्धिक वर्ग मेरी विचार-पद्धति और कार्यविधिके विरुद्ध खड़ा जान पड़ता है।" (पृष्ठ ३८०)। अपने अध्यक्षीय भाषणमें उन्होंने राष्ट्रकी स्थितिका, कलकत्तेके समझौतेका और उससे उठनेवाले प्रश्नोंका अत्यन्त सम्यक् और आधिकारिक विवरण प्रस्तुत किया। उसमें उन्होंने स्वराज्यवादी दलके महत्त्वके सम्बन्धमें, असहयोग आन्दोलन स्थगित करनेके बाद राष्ट्रीय शालाओंकी भूमिकाके विषयमें और बंगालके दमनके बारेमें भी अपने विचार स्पष्ट किये। उन्होंने अपनी कल्पनाके स्वराज्यकी एक रूप-रेखा भी प्रस्तुत की और कहा, "मैं साम्राज्यके भीतर स्वराज्य लेनेका उद्योग करना चाहता हूँ, किन्तु यदि ब्रिटेनके दोषके कारण उससे सम्बन्ध तोड़ लेना आवश्यक हुआ तो मैं पूर्णतः सम्बन्ध तोड़ने में भी नहीं झिझकूँगा। यदि ऐसा हो तो मैं ब्रिटेनसे अलग होनेकी जिम्मेदारी अंग्रेज लोगोंपर ही डालूँगा।" (पृष्ठ ५१६)। अपने भाषणके अन्त में उन्होंने असहयोग और सत्याग्रहमें अपनी दृढ़ आस्था फिरसे व्यक्त करते हुए कहा: "एक कांग्रेसीकी हैसियतसे कांग्रेसको ज्योंकात्यों कायम रखनेके लिए मैं असहयोगको मुल्तवी रखनेकी सलाह दे रहा हूँ, क्योंकि मैं देखता हूँ कि राष्ट्र इसके लिए अभी तैयार नहीं है। लेकिन एक व्यक्तिकी हैसियतसे मैं तबतक ऐसा नहीं कर सकता--न करूँगा ही--जबतक कि यह सरकार जैसीकी-तैसी बनी हुई है।...असहयोग और सविनय अवज्ञा, सत्याग्रह नामक एक ही वृक्षकी अलग-अलग शाखाएँ हैं। यह मेरा कल्पद्रुम--जाम-ए-जम--है।...इस सत्याग्रहने दक्षिण आफ्रिका, खेड़ा या चम्पारनमें मुझे निराश नहीं किया। मैं ऐसे और भी बहुत-से प्रसंग गिना सकता हूँ जब इसने, इससे जितनी भी आशाएँ की गई थीं, सब पूरी की। इसमें किसी किस्मकी हिंसा या घृणा-भावके लिए जगह नहीं है। इसलिए मैं अंग्रेजोंसे नफरत नहीं कर सकता और न करूँगा। पर साथ ही मैं उनके जुएको भी गवारा नहीं कर सकता।" (पृष्ठ ५२४)

इस खण्डमें समाविष्ट पत्रोंमें से कुछ तो अपने सहयोगियोंके साथ गांधीजीके व्यक्तिगत सम्बन्धकी सुन्दर झाँकी प्रस्तुत करते हैं। सी० एफ० एन्ड्रयूजको लिखे अपने २५ अगस्तके पत्रमें उन्होंने निम्न सलाह दी: "क्या तुम कुछ समय सन्तोषके साथ आराम करनेमें नहीं बिताना चाहोगे? कर्म प्रार्थना है, पर यह पागलपन भी हो सकता है।" (पृष्ठ ४०)। और पत्रके अन्तमें उन्होंने लिखा: "अगाध स्नेहके