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३. मलाबार संकट-निवारण[१]

इस अपीलका उत्तर अपेक्षासे भी ज्यादा शीघ्रतासे मिला है, यह मुझे मानना पड़ेगा। ईश्वरका अनुग्रह है कि लोगोंके दिलोंमें दया-भाव है और यह बात एक बार नहीं बल्कि अनेक बार साबित हो चुकी है। इसके लिए अनेक सहायता-कोष आरम्भ हुए हैं। जिसको जिसमें देना ठीक जँचे वह उसमें चन्दा दे, किन्तु दे अवश्य, मेरी यही प्रार्थना है। मलाबारके कष्टोंकी कल्पना ही नहीं की जा सकती। मरने की आशा रखनेवाला मनुष्य जब जीता बच जाता है तब खुशीसे नाच उठता है। जीवित बच गया यह नशा जबतक उसे रहता है तबतक उसे भूख-प्यास और गर्मी-सर्दीकी सुध नहीं रहती। यही हालत मलाबारके भाई-बहनोंकी समझनी चाहिए। जो गये सो तो गये; जो बचे हैं वे जीवित बचने के नशे में खुश हैं। किन्तु ज्यों-ज्यों दिन जायेंगे त्यों-त्यों उनके कष्ट बढ़ेगे, घटेंगे नहीं। हम ईश्वरके आगे पामर प्राणी हैं। अपनी मगरूरीमें चींटीको कुचलनेकी जितनी शक्ति हम अपने भीतर मानते हैं उससे हजारों गुनी शक्ति हमें चींटीकी तरह कुचल डालने के लिए ईश्वरने अपने पास रखी है और मौका पड़नेपर वह उसका उपयोग भी करता है। परन्तु उसकी हिंसा हिंसा नहीं होती, क्योंकि वह सर्वज्ञ है। वह दयाका सागर है। उसके भेदको हम समझ नहीं सकते। इससे हम उसे कर्त्ता, भर्त्ता और संहर्त्ता मानते हैं। किन्तु वह न तो कर्त्ता है, न भर्त्ता है, न संहर्त्ता है। हम न जाने किस नियमके वशवर्ती होकर जन्मते हैं, जीते हैं और मरते हैं?

कुछ भी हो, जबतक हम जीवित रहना चाहते हैं तबतक दूसरोंके जीनेमें मदद करना हमारा सहज और अनिवार्य धर्म है।

पाठक यह पढ़कर खुश होंगे कि कुछ भाइयों और बहनोंने एक जूनका खाना छोड़ दिया है, कुछने दूध पीना छोड़ दिया है और कुछने किसी दूसरी चीजका त्याग कर दिया है और ऐसा करते हुए जो बचत होती है उसे वे इस कोषमें दे देते हैं। बालक भी उसमें अपनी मर्जी से शरीक हुए है। इससे भी अच्छी रकम मिलनेकी सम्भावना है। एक लड़कीने तीन पैसे चुराकर रखे थे, वे भी इस कोषमें आये हैं। एक बहनने अपनी ठोस सोनेकी चार चूड़ियाँ और जंजीर दी हैं। एक और बहनने अपनी वजनदार कण्ठी दी है। एक लड़केने अपनी सोनेकी बाली दी है। एक बहनने अपने चाँदीके कड़े दिये हैं और एकने पैरके अँगूठेके दो छल्ले दिये हैं। एक अन्त्यज लड़कीने अपनी इच्छासे अपने पैरकी तोड़ियाँ दी हैं। एक नवयुवकने अपने कफोंके सोनेके बटन दिये हैं।

 
  1. बाढ़ सहायता कोषके सम्बन्धमें ऐसी ही एक अपील यंग इंडियामें छपी थी, देखिए खण्ड २४, पृष्ठ ५८५-८७।