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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

१. मैले कपड़े धुलाकर दें,

२. फटे कपड़े सीकर दें,

३. सब कपड़ोंको तह कर उनके बंडल बाँधे और उनपर देनेवालेके नामकी और कपड़ोंकी चिटें लगायें।

ये कपड़े हम भिक्षुओंको नहीं भेज रहे हैं। इनमें हमारी तरह ही अच्छी हालतमें रहनेवाले मध्यमवर्गके हजारों भाई-बहन होंगे। अपने सगे भाई-बहनोंको हम जिस स्नेह, सतर्कता और विवेकके साथ कोई चीज भेजते या देते हैं, मैं आपसे उसी प्रेम, विवेक और सतर्कताकी आशा इसमें भी रखता हूँ। सच बात तो यह है कि यदि हम भिक्षुकको भी कुछ दें तो विवेक और सतर्कताके साथ ही दें। मैले कपड़ोंको धोनेमें, फटे कपड़ोंको सीनेमें और उनकी तह बनाने में बहुत वक्त नहीं लगता। उसमें केवल प्रेमकी परीक्षा है।

महाविद्यालयके विद्यार्थी

पाठकोंको यह तो मालूम ही है कि महाविद्यालयके विद्यार्थियोंने सूत दिया है। परन्तु इसके अलावा उन्होंने श्रम भी किया है, जैसा स्वामी श्रद्धानन्दके शिष्योंने दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहके समय किया था। विद्यापीठकी जो इमारत बन रही है उसमें कोई पौन सौ विद्यार्थी मजदूरी कर रहे हैं। वे उसमें मिली रकम इस चन्देमें देंगे। मैं विद्यार्थियोंको धन्यवाद देता हूँ और आशा रखता हूँ कि वे समय-समयपर ऐसा ही श्रम करेंगे। यही उपार्जित विद्याका शुद्ध उपयोग है।

यह सब कहाँ दें?

यह धन अहमदाबादमें प्रान्तीय कमेटीके कार्यालय, 'नवजीवन' कार्यालय या सत्याग्रहाश्रममें दें। वे इसे बम्बईमें प्रान्तीय कमेटीको भेजनेकी व्यवस्था करें अथवा प्रिन्सेस स्ट्रीटमें 'नवजीवन' के शाखा कार्यालयको दें। मेरी सलाह है कि सभी लोग हर जगहसे धन, सूत और कपड़ोंकी रसीद जरूर ले लें।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १७-८-१९२४