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४. शिक्षक और चरखेकी शिक्षा

इस विषयपर भाई हरिशंकर त्रिवेदीने निम्नलिखित विचारणीय पत्र लिखा है:[१]

मेरे मनमें तो तनिक भी शंका नहीं है कि यदि शिक्षक कताई और उससे सम्बन्धित सभी अगली और पिछली क्रियाओंको सम्पूर्ण रूपसे सीख लें तथा उनमें उनकी अभिरुचि उत्पन्न हो जाये तो विद्यार्थी भी अवश्य कातना सीखेंगे। किस विद्यार्थीका यह अनुभव नहीं है कि उसकी किसी विषयमें दिलचस्पी उस विषयके कारण नहीं होती, बल्कि शिक्षकोंके कारण होती है। मेरा अनुभव तो यह है कि जिस रसायनशास्त्रको पढ़ाते समय एक शिक्षक मुझे निद्रावश कर देता था उसी विषयको पढ़ाते समय दूसरा शिक्षक मुझे जाग्रत रखता और उसमें मेरे लिए रस उत्पन्न कर देता था। एक शिक्षक गणितका सवाल पढ़ाता है, विद्यार्थीको वह समझमें नहीं आता इसलिए अच्छा नहीं लगता और दूसरा शिक्षक पढ़ाता है तो ऐसा लगता है कि उसका घंटा समाप्त ही न हो। सवाल तो वही होता है, विद्यार्थी भी वही; अन्तर सिर्फ यह है कि एकके पढानेका ढंग सरस होता है और दूसरेका नीरस। चरखेमें रसकी गागर भरी है। ऐसा मालूम होता है कि दक्षिणामूर्ति भवन में इस रसके पारखी शिक्षक हैं।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १७-८-१९२४

५. टिप्पणियाँ

मौलाना शौकत अली काठियावाड़में

मौलाना शौकत अली दिल्लीसे भेजे अपने तारमें सूचित करते हैं कि वे अपने साथियों सहित काठियावाड़की यात्राके लिए रवाना हो रहे हैं और १८ तारीखको राजकोट पहुँचेंगे। काठियावाड़की खिलाफत समितियों, अंजुमनों, जमातों और अन्य ऐसी संस्थाओंको, जो अपने क्षेत्रमें मौलाना साहब और उनके साथियोंको आनेका न्यौता देना चाहती हों, चाहिए कि वे समय रहते मौलाना साहबको राजकोटके पतेपर पत्र लिखें, ताकि वे अपना कार्यक्रम तय कर सकें। मुझे उम्मीद है कि काठियावाड़में मौलाना शौकत अली और उनके साथी जहाँ-जहाँ जायेंगे वहाँ-वहाँ हिन्दू और मुसलमान सब उनका स्वागत करेंगे।

 
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