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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्त्रियोंके अधिकारोंकी माँग करते हुए हमें स्त्रियोंके धर्मकी बलि नहीं देनी चाहिए। स्त्रियों के अधिकारोंका समर्थन करते हुए भी मैंने पुरातन कालके पुरुषोंकी निन्दा अथवा भर्त्सना करना आवश्यक नहीं समझा।

अन्त्यजोंके प्रति तिरस्कार

अन्त्यजोंके प्रति तिरस्कारभावके जितने उदाहरण काठियावाड़में देखने में आते हैं उतने गुजरातमें अन्यत्र नहीं। काठियावाड़से आनेवाले अन्त्यज भाई ऐसे समाचार देते हैं और अन्य उनकी सत्यताकी पुष्टि करते हैं। एक सज्जन लिखते हैं कि काठियावाड़की रेलगाड़ियोंमें अन्त्यजोंको अभीतक उतनी ही तकलीफें उठानी पड़ती हैं जितनी पहले उठानी पड़ती थीं। उन्हें गाड़ियोंमें बैठने नहीं दिया जाता। अगर वे बैठते हैं तो अन्य सवारियाँ उन्हें दूर बिठाती हैं, उनका तिरस्कार करती हैं और उन्हें गालियाँ देती हैं। यह तिरस्कार भी धर्मका एक अंग माना जाता होगा, क्योंकि ऐसा व्यवहार करनेवालोंमें तिलकधारी भी शामिल होते हैं। यह तिरस्कार उनकी मलिनताको लेकर नहीं किया जाता क्योंकि यदि अन्त्यज भाई तनिक झूठ बोलें तो उनका काम निकल जाता है, इतना ही नहीं बल्कि उनका आदर-सम्मान भी किया जाता है। उन्हें बस अपनी जाति ठाकुर, राठौर अथवा ऐसी ही कोई बतानेकी जरूरत होती है। अतएव जो-कुछ तिरस्कार सहना पड़ता है सो सत्यवादीको सहन करना पड़ता है। अन्त्यज भाई झूठ बोलकर क्षणिक सुख प्राप्त नहीं करना चाहते, इसके लिए वे बधाईके पात्र हैं। ऐसा करके वे यह भी सिद्ध करते हैं कि वे अवगणना करनेवाले लोगोंसे अधिक गुणवान हैं। यदि रेलवे के अधिकारी दयावान हों तो वे निरपराध अन्त्यजोंकी रक्षा कर सकते हैं। सारी सवारियाँ ही अन्त्यजोंका तिरस्कार नहीं करतीं। जो लोग उनका तिरस्कार नहीं करते, उन्हें उनका रक्षक बनना चाहिए। अन्त्यजोंको इस बातका विश्वास हो जाना चाहिए कि जो मनुष्य खादीकी टोपी पहने हुए है वह उनकी रक्षा अवश्य करेगा।

अन्त्यज स्कूलोंकी कमी

एक सज्जन लिखते हैं:

भावनगरके अन्तर्गत गढ़डा, उमराला, महुवा, तलाजा और शिहोर गाँवोंमें अन्त्यज बालकोंकी संख्या इतनी है कि वहाँ अन्त्यज स्कूल स्थापित किये जा सकते हैं। महुवाके लिए तो बम्बईके एक सज्जन खर्च देनेके लिए भी तैयार हैं। लेकिन कोई स्थानीय सज्जन ऐसी व्यवस्थाके लिए तैयार नहीं है इसी कारण स्कूल खोलनेकी बात मुलतवी कर दी गई है।

क्या महुवा और अन्य गाँवोंमें कोई मनुष्य व्यवस्था करने के लिए भी तैयार नहीं है? यदि उन गाँवोंमें ऐसे लोग नहीं हैं तो क्या काठियावाड़के अन्य भागोंके स्वयंसेवक इसके लिए तैयार न होंगे?