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गांधीजीके लिए या देशके लिए?

अमरेलीके खादी-कार्यालयने जो पत्रिका प्रकाशित की है उसका मैं स्वागत करता हूँ। जो व्यक्ति कपाससे सम्बन्धित सभी क्रियाओंको सीखना चाहता हो अथवा जो सूत कातकर कांग्रेसको चन्दा देना चाहता हो उसके लिए इस पत्रिकामें सारी सुविधाओंकी जानकारी दी गई है। जो चाहे उसके लिए तालीमकी व्यवस्था भी की गई है। मुझे उम्मीद है कि बहुतसे काठियावाड़ी भाई-बहन इन सुविधाओंसे लाभ उठायेंगे। इतना याद रखनेकी जरूरत है कि कांग्रेसके प्रस्तावका उद्देश्य जनताके मध्यम वर्गसे धार्मिक क्रियाके रूपमें कताई करवाना है। यदि यह प्रयास फलीभूत हो तो कताई-धर्मका पालन फिर होने लगे और गरीबोंके पेटमें जो गड्ढा पड़ गया है वह भी भरे। इस तरह चरखेका घर-घरमें प्रचार तभी होगा जब पहले उसके प्रति लोगोंमें श्रद्धा उत्पन्न कर दी जायेगी। यह श्रद्धा तभी उत्पन्न हो सकती है जब जनताका मध्यम वर्ग उसे धर्मके रूपमें अंगीकार करे। जितनी जरूरत चरखेको लोकप्रिय बनानेकी है उतनी ही खादीको भी लोकप्रिय बनानेकी है। हिन्दुस्तान में जब यह स्थिति आयेगी कि घीके समान खादीको बेचने में भी कोई दिक्कत न हो, उसी दिन समझना चाहिए कि हिन्दुस्तानसे भुखमरी चली गई। इस महायज्ञमें काठियावाड़ पूरा-पूरा योगदान दे, ऐसी मेरी कामना है। इस यज्ञकी यह खूबी है कि जो इसे करता है उसे तात्कालिक लाभ मिलता है। यदि छब्बीस लाख काठियावाड़ी प्रति व्यक्तिके हिसाबसे एक रुपयेकी मजदूरी करें तो काठियावाड़ प्रतिवर्ष छब्बीस लाख रुपया बचायेगा।

खादी-कार्यालयके कार्यकर्ताओंको मेरी सलाह है कि वे अपने कामके सम्बन्धमें तनिक भी निराश न हों। इस समय देशमें निराशा और अश्रद्धा घर कर गई दिखाई पडती है। ऐसे समयमें यदि थोडी-सी भी दृढ़तासे काम लिया गया तो निराशाके बादलोंको छँटते देर नहीं लगेगी।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १७-८-१९२४

६. गांधीजीके लिए या देशके लिए?

एक मित्र कहते हैं कि आजकल गांधीजीके नामसे विद्यार्थियोंको कातनेके लिए जोर देकर कहनेका एक रिवाज-सा पड़ गया है। वे पूछते हैं कि क्या यह ठीक है?

जबतक मैं देशके लिए और देश ही के लिए कार्य करता रहूँ, तबतक इस प्रकारकी अपील खास परिस्थितिमें और कुछ हदतक अनुचित नहीं है। मेरे लिए कातनेकी अपील, देशके लिए कातनेकी अपीलसे अधिक सीधा असर पहुँचा सकती है। फिर भी इसमें कोई शक नहीं कि सबको देशके लिए कातना ही उचित है। अपने लिए उसके आदर्श अर्थमें कातना और भी अच्छा है। क्योंकि हरएक कार्यकर्ता जो देशके लिए कार्य करता है, वह अपने लिए भी कार्य करता है। जो सिर्फ अपने लिए काम करता है, वह अपना ही नुकसान करता है। हमारा लाभ देशके लाभके अनुकूल होना चाहिए। वह उससे जुदा न हो जाना चाहिए। जो लोग केवल दिखाने के