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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लिए कभी-कभी कातते हैं और फिर बन्द कर देते हैं, वे आँखोंमें धूल झोंकनेका ही प्रयत्न करते हैं।

हिन्दी नवजीवन,१७-८-१९२४

७. क्षमा-प्रार्थना

'हिन्दी नवजीवन' का तीसरा वर्ष आज पूरा होता है। मुझे कहते हुए रंज होता है कि मैं 'हिन्दी नवजीवन' के लिए स्वतन्त्र लेख बहुत न लिख सका। पाठक इस बातको मानें कि इसका कारण अनिच्छा नहीं, बल्कि समयका अभाव है और इसके लिए वे मुझे क्षमा करें।

'हिन्दी नवजीवन' अबतक स्वावलम्बी नहीं हुआ है। मैंने एक समय जाहिर किया है कि किसी अखबारको नुकसान उठाकर चलाना प्रजाकी दृष्टिसे अच्छा नहीं है। 'हिन्दी नवजीवन' केवल सेवा-भावसे ही निकलता है। इसीलिए प्रत्येक पाठक उसपर अपना स्वामित्व समझे और उसे स्वावलम्बी बनानेकी कोशिश करे। अब २,७०० प्रतियाँ बिकती है। स्वावलम्बी बनने के लिए कमसे-कम ३,००० प्रतियाँ बिकनी चाहिए। मैं आशा करता हूँ कि पाठकगण कोशिश करके इस कमीको दूर करेंगे।

हिन्दी नवजीवन,१७-८-१९२४

८. पत्र: अजमेरके यातायात अधीक्षकको

पता: आश्रम
साबरमती
१८ अगस्त, १९२४

सेवामें
यातायात अधीक्षक
अजमेर
महोदय,

पिछले शनिवार अर्थात् इसी महीनेकी १६ तारीखको मैंने द्वितीय श्रेणीमें अहमदाबादसे दिल्लीकी यात्रा की थी। मेरे साथ तीन परिचारक थे, जिनके पास तृतीय श्रेणीके टिकट थे। इनमें से एक अहमदाबादके उप-स्टेशनमास्टरकी अनुमतिसे तथा मेरे अस्वस्थताके प्रमाणपत्रके आधारपर मेरे साथ मेरे डिब्बे में ही बैठा सफर कर रहा था। दो वर्ष पूर्व अपने कारावासके पहले मैं आपकी तथा दूसरी भारतीय रेलवे लाइनोंपर इसी प्रकार यात्रा किया करता था। एक बार जी० आई० पी० के एक[१]

  1. १. ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे।