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पत्र: अजमेरके यातायात अधीक्षकको

टिकट निरीक्षकने एतराज किया था। तबतक मैं अपने पास डाक्टरी प्रमाणपत्र नहीं रखता था, क्योंकि मेरा शरीर देखकर ही मेरी अस्वस्थताका पता चल जाता था। परन्तु इस अवसरपर जी० आई० पी० के यातायात अधीक्षकने मेरा ध्यान उस नियमकी ओर आकृष्ट किया जिसके अन्तर्गत उच्च दरजेके बीमार यात्रीके साथ निचले दर्जे के परिचारक यात्रीको चलनेकी अनुमति है और तबसे में अपने साथ डाक्टरी प्रमाणपत्र रखने लगा। इसलिए इस बार भी मैंने अहमदाबादके स्टेशन अधिकारियोंके समक्ष प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया--जिसकी प्रतिलिपि यहाँ संलग्न है।

१७ तारीखको जब हम दिल्ली स्टेशनपर उतरे तो एक टिकट कलेक्टरने, जिसको यह बतला दिया गया था कि एक परिचारकने जिसके पास तृतीय श्रेणीका टिकट था मेरे साथ द्वितीय श्रेणी में यात्रा की है, मय जुर्मानेके, अतिरिक्त किरायेकी माँग की। मेरे परिचारकने उप-अधीक्षकको उन परिस्थितियोंके बारे में बतलाया, जिनके कारण उसे मेरे साथ द्वितीय श्रेणीमें यात्रा करनी पड़ी थी। वह डाक्टरी प्रमाणपत्र दिखलानेके लिए और उस नियमको भी पढ़कर सुना देनेके लिए तैयार था, जिसके अनुसार ऊँचे दर्जेके यात्रीको अपने साथ उसी डिब्बेमें तृतीय श्रेणीके टिकटपर एक परिचारकको ले जानेका अधिकार प्राप्त है। ( कोचिंग टैरिफ, पार्ट १, पैरा ६९ से उसकी एक प्रतिलिपि लेकर उसने अपने पास रख ली थी)। मुझे यह बताया गया है कि उसने उसको देखा तक नहीं। इसके बाद उप-अधीक्षकके द्वारा स्टेशन अधीक्षकसे मिलनेकी कोशिश की गई; पर उसने मेरे परिचारकसे मिलनेसे ही इनकार कर दिया। में इस व्यवहारको अत्यन्त अशिष्टतापूर्ण मानता हूँ। झगड़ेको बचाने के लिए मेरे परिचारकने विरोधके साथ २३ रु० अदा कर दिये। मैं उसकी रसीद यहाँ नत्थी कर रहा हूँ और अब आपसे निवेदन करता हूँ कि उपर्युक्त कारणोंके आधारपर आप इन रुपयोंको लौटानेकी कृपा करें।

आपका विश्वस्त,
मो० क० गांधी

संलग्न:

१. अस्वस्थताका डाक्टरी प्रमाणपत्र

२. अतिरिक्त किरायेका टिकट नं० ए-९०२५७ अंग्रेजी

पत्र (एस० एन० १०१२०) की फोटो-नकलसे।