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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हस्वीका भी। मुझे कताई सिखानेमें कुछ हिस्सा इनका भी है। ४ तारीखको मैंने तीसरी आँटी काती, लेकिन कितने गज सूत काता यह गिनना ही भूल गया। मेरा खयाल है कि वह ११० गज होगा। ५, ६, ७ तारीखको मैंने ३०० गज काता और उसके बाद मुझे माताजीको देखनेके लिए रामपुर जाना पड़ा। मुझे बड़ा अफसोस है कि जानेकी हड़बड़ी और जल्दबाजीके कारण मेरा चरखा पीछे रह गया। वहाँसे लौटने के बाद १५० गजके करीब फिर काता लेकिन हिन्दू-मुस्लिम समझौता कराने, माँकी बीमारी और खुद मेरे पैरकी वजहसे---जिसका एक फोड़ा अभी अच्छा नहीं हो पाया है कि दूसरा निकल आया है---मैं काममें बड़ा उलझा रहा। आखिरकी चौथी आँटीमें ४६२ गज सूत है। यह चार दिनका काम है। मैं आपसे वादा करता हूँ कि खुदाने चाहा तो १५ सितम्बरतक सिर्फ २,००० गज ही न कातूँगा बल्कि अगस्तकी कमीको भी पूरा कर दूँगा। तबतक क्या आप कामके बजाय कामकी इच्छाको ही कबूल कर लेंगे?

जो हमेशा सफरमें रहता है और बीमार रहता है, उसके लिए यह बहुत है। लेकिन मैं यह जानता हूँ कि अपने अनुयायियोंसे काम लेनेकी आशा रखने के पहले सभापतिको खुद अपने काममें नियमित रहना और उसपर खूब ध्यान देना चाहिए। अली भाई सिर्फ कांग्रेसके ही नहीं, मुसलमानोंके भी प्रतिनिधि है। सब तरफसे यही आवाज उठती है कि मुसलमान कांग्रेसके कार्यक्रमके प्रति कोई उत्साह नहीं दिखाते। उनको उनके कर्त्तव्य के प्रति जागरूक बनाने के लिए बड़े प्रयत्नकी आवश्यकता है। कातनेमें यदि मुसलमान हिन्दुओंकी बराबरी करने लगे तो उसका असर हिन्दुओंपर भी पड़ेगा। तब विदेशी कपड़ेका बहिष्कार सफल होगा और उसके फलस्वरूप प्रजाको आथिक मक्ति मिल जायेगी। आर्थिक मुक्तिसे आत्मविश्वास प्रकट होगा और आत्मविश्वाससे स्वराज्य अवश्य ही प्राप्त होगा।

आचार्य गिडवानी

ऐसा बताया जाता है कि नाभा जेलमें आचार्य गिडवानीका वजन ३० पौंड कम हो गया है और श्रीमती गिडवानीके बार-बार लिखकर पूछनेपर भी कि वे अपने पतिसे कब मिल सकेंगी, कोई उत्तर नहीं मिला है। यह उदासीनता हृदयहीन है। राज्यके प्रशासक महोदय कमसे-कम आचार्य गिडवानीके स्वास्थ्यके बारेमें नियमित रूपसे बुलेटिन जारी कर सकते हैं, जिससे जनताको उनकी तन्दुरुस्तीका सही हाल मालूम हो सके। यह समझना भी बड़ा मुश्किल है कि श्रीमती गिड़वानीको जितनी मर्तबा वे चाहें उनके पतिसे क्यों नहीं मुलाकात करने दी जाती। मेरी उनके साथ सहानुभूति है। लेकिन मैं जानता हूँ कि वे बहादुर पतिकी बहादुर पत्नी हैं। मैं सिर्फ उनको यही सलाह दे सकता हूँ कि वे किसी बातकी भी चिन्ता न करें और विश्वास रखें कि मनुष्य की अपेक्षा ईश्वर उनके पतिकी सँभाल अधिक अच्छी तरह रख सकता है। उन्हें और हमें यह महसूस करना चाहिए कि सत्याग्रही और असहयोगी होने के