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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

संघर्ष अनिवार्य है। ये दोनों मित्रोंकी तरह गले नहीं मिलेंगे बल्कि परस्पर वैरियोंकी तरह जूझेंगे। मैंने अमेरिकी मित्रोंके पत्रकी भाषाका ही प्रयोग किया है। पर मैं अपने अमेरिकी पाठकों तथा औरोंको सूचित करता हूँ कि मैं किसी भ्रमका शिकार नहीं हूँ। मेरा दावा तो बहुत ही मामूली-सा है। जो मित्रता है वह तो अली भाइयोंके और मेरे बीच है, अर्थात् कुछ बड़े ही सम्माननीय मुसलमान मित्रोंके और मेरे बीच है। यदि मैं इसे मेरे नहीं, मुसलमानों और हिन्दुओंके बीच मित्रता कह सकूँ तो फिर पूछना ही क्या! पर हिन्दू-मुस्लिम मित्रता तो लगता है दिवा-स्वप्न-जैसी सिद्ध हुई। इसलिए वास्तवमें तो यही कह सकते हैं कि यह मित्रता कुछ मुसलमानों, जिनमें अली भाई भी हैं, और कुछ हिन्दुओंके बीच है, जिनमें एक मैं भी हूँ, अब यह हमें कहाँतक आगे ले जायेगी, यह भविष्य ही बता सकता है। इस मित्रतामें कोई बात गोलमोल या अस्पष्ट नहीं है। यह तो संसारमें सबसे अधिक स्वाभाविक चीज है। दुःखकी बात तो यह है कि इसपर लोगोंको आश्चर्य ही नहीं, आशंकाएँ भी हैं। भारतके हिन्दू और मुसलमान यहीं जन्मे और यहीं पले हैं। एक-दूसरेके दुख-सुख, आशा-निराशाके साथी हैं। ऐसी हालतमें इससे बढ़कर स्वाभाविक बात क्या हो सकती है कि दोनों स्थायी तौरपर परस्पर मित्र और भाई, एक ही माताके पुत्र बनकर रहें? ताज्जुब तो इस बातपर होना चाहिए कि दोनोंमें झगड़े क्यों होते हैं; इस बातपर नहीं कि दोनोम एकता कैसे हो रही है। दोनोंका यह सम्मिलन संसारके लिए एक संकट क्यों माना जाना चाहिए? दुनियाका सबसे बड़ा संकट तो आज वह साम्राज्यवाद है, जो दिनपर-दिन अपने पैर फैलाता जाता है, दुनियाको लूटता जाता है, जिसे अपनी जवाबदारीका भान नहीं है और जो भारतको गुलाम बनाकर उसके द्वारा दुनियाकी तमाम निर्बल जातियोंके स्वतन्त्र अस्तित्व और विकासके लिए खतरा उपस्थित कर रहा है। यह साम्राज्यवाद ही ईश्वरको धता बता रहा है। वह ईश्वरके नामपर उसके आदेशके खिलाफ करतूतें करता है। वह अपनी अमानुषिकताओं, डायरशाही और ओ'डायरशाहीको मानवता, न्याय और नेकीके आवरणमें छिपा लेता है और इसमें भी अत्यन्त दुःखकी बात यह है कि अधिकांश अंग्रेज नहीं जानते कि इसमें उनके ही नामका दुरुपयोग किया जा रहा है। इससे भी बढ़कर करुणाजनक बात यह है कि सौम्य और ईश्वर भीरु अंग्रेजोंके दिलमें यह जँचा दिया जाता है कि भारतमें तो चैनकी बंसी बज रही है--जबकि दर हकीकत यहाँ के रुण-क्रन्दन हो रहा है; और आफ्रिकी जातियाँ भी अमन-चैन कर रही हैं, हालाँकि वाकई वे उनके नामपर लूटी और अपमानित की जा रही हैं। यदि जर्मनी और यूरोपके मध्यवर्ती राज्योंकी शिकस्तने जर्मन-रूपी संकटका अन्त किया है, तो मित्र-राष्ट्रोंकी विजयने एक नये संकटको जन्म दे दिया है, जो संसारकी शान्तिके लिए उससे कम खतरनाक और घातक नहीं है। इसलिए मैं चाहता हूँ कि हिन्दुओं और मुसलमानोंकी यह मित्रता एक स्थायी सत्य बन जाये और उसका आधार दोनोंके प्रबुद्ध हितोंकी परस्पर स्वीकृति हो। तब जाकर वह घृणित साम्राज्यवादके लोहेको मानव-धर्मके सोने में बदल सकेगी। हम चाहते हैं कि हिन्दू-मुस्लिम मित्रता भारत और सारे संसारके लिए एक