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शक्तिका अपव्यय?

मंगलमय वरदान बने, क्योंकि उसकी कल्पनाके मूलमें सबके लिए शान्ति और सद्भावकी भावना है। उसने भारतमें सत्य और अहिंसाको अनिवार्य रूपसे स्वराज्य प्राप्त करनेका साधन स्वीकार किया है। उसका प्रतीक है चरखा, जो कि सादगी, स्वावलम्बन, आत्म और करोड़ों लोगोंमें स्वेच्छा प्रेरित सहयोगका प्रतीक है। यदि ऐसी मैत्री संसारके लिए संकट-रूप हो तो समझना चाहिए कि दुनियामें कोई ईश्वर है ही नहीं, अथवा यदि है तो वह कहीं गहरी नींदमें सो रहा है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २१-८-१९२४

१२. शक्तिका अपव्यय?

गत मई मासके 'वेलफेयर' नामक अंग्रेजी पत्रके एक लेखकी ओर एक मित्रने मेरा ध्यान खींचा है, जो कि श्री एम० एन० रायका[१] लिखा हुआ है और जिसमें उन्होंने कोकोनाडाकी खादी प्रदर्शनीके उद्घाटनके अवसरपर दिये गये आचार्य रायके[२] भाषणकी आलोचना की है। मेरे कागज-पत्रोंमें उस पत्रिकाकी प्रति कोई दो महीनेसे रखी हुई थी। खेद है कि मैं उसे अबतक पढ़ न पाया था। पढ़ चुकनेके बाद ऐसा मालूम हुआ कि आचार्य रायके विचारोंका श्री एम० एन० रायने जो खण्डन किया है उसका निरसन इन पृष्ठोंमें कई बार किया जा चुका है। पर पाठकोंकी स्मृति अल्पजीवी होती है, इसलिए अच्छा होगा कि फिर एक बार यहाँ मैं अपने तर्कोंको सिलसिलेवार पेश कर दूँ। आचार्य रायके ये आलोचक महाशय मानते हैं कि चरखेके लिए जो इतना उद्यम किया जा रहा है यह महज 'शक्तिका अपव्यय' है। आचार्य रायकी दलीलोंका मुख्य मुद्दा यह है कि चरखा खासकर किसानोंके लिए अपना एक सन्देश रखता है और वह यों कि इसके जरिये किसान अपने फुरसतके वक्तका सदुपयोग कर सकते हैं। पर श्री रायका कहना है कि किसानोंके पास फुरसतका वक्त होता ही नहीं और जितनी कुछ फुरसत उन्हें मिलती है, उतनी उनके लिए जरूरी है। यदि उन्हें चार महीने फुरसत रहती है तो इसकी वजह यह है कि वे आठ तक हदसे ज्यादा काम करते हैं और अगर इन फुरसतके चार महीनों में भी उन्हें चरखेपर काम करना पड़े तो उन आठ महीनों में काम करनेकी उनकी शक्ति हर साल कम होती जायेगी। दूसरे शब्दोंमें कहें तो आलोचक महाशयकी रायमें भारतके पास चरखा कातनेका समय नहीं है।

ऐसा जान पड़ता है कि आलोचक महोदयको भारतके किसानोंका बहुत ही कम अनुभव है और न ही वे इस बातका चित्र अपनी आँखोंके सामने खड़ा कर पाये है कि चरखा किस तरह काम करेगा--बल्कि आज कर रहा है। किसानों को

  1. १. प्रसिद्ध विचारक और लेखक; रैडिकल डेमोंक्रेटिक दलके संस्थापक।
  2. २. आचार्य प्रफुल्लचन्द्र राय।