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शक्तिका अपव्यय?

हैं। हमें सरकारकी अनिच्छा, पूँजीका अभाव और नये तरीकोंके प्रति किसानोंका विरोध-भाव, इन तीनों कठिनाइयोंको पार करना होगा। परन्तु चरखा-कताईके निस्बत जिन बातोंका दावा किया जाता है वे ये हैं:

१. चरखेसे उन लोगोंको एक सुलभ धंधा मिलता है, जिन्हें फुरसत रहती है और दो पैसे ज्यादा कमानेकी जरूरत रहती है;

२. हजारों लोग इससे वाकिफ हैं;

३. इसे आसानीसे सीख सकते हैं;

४. इसके लिए पूँजीकी वस्तुतः बिलकुल जरूरत नहीं है;

५. चरखा आसानीसे बहुत कम दाममें बन सकता है। बहुतेरे लोग यह भी नहीं जानते कि किसी मामूली तकलीपर भी सूत काता जा सकता है;

६. लोग उसे हिकारतकी निगाहसे नहीं देखते;

७. अकाल और अभावके दिनों में तुरन्त संकट-निवारणका सबसे अच्छा साधन है;

८. विलायती कपड़े की खरीदके रूपमें हिन्दुस्तानके बाहर जानेवाले धनके प्रवाहको बन्द करनेकी सामर्थ्य अकेले चरखेमें ही है;

९. इस तरह बची हुई रकमको वह करोड़ों गरीबोंके घर पहुँचा देता है;

१०. थोड़ी-सी सफलता भी उसी हदतक लोगोंको तुरन्त फायदा पहुँचाती है;

११. लोगोंके अन्दर सहयोग उत्पन्न करने और फैलानेका सबसे समर्थ साधन है।

इसके रास्तेमें ये कठिनाइयाँ हैं: मध्यवर्गके लोगोंके मनमें इसके प्रति श्रद्धाका अभाव है जबकि मध्यम श्रेणीके ही लोगोंमें अच्छी तादादमें कार्यकर्त्ता मिल सकते हैं। और भी बड़ी कठिनाई है बारीक और चिकने दिखाई देनेवाले मिलके बने कपड़ोंके बजाय खादी पहननेकी ओर लोगोंकी अरुचि और संक्रमण-अवस्थामें खादीका महँगापन। यदि लोग अच्छी तादादमें कताईके प्रस्तावको अपना लें तो खादी मिलके कपड़ेका मुकाबला कर सकती है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि इस आन्दोलनकी सफलताके लिए लोगोंको कुछ त्याग करनेकी जरूरत है। यदि सरकार हमारी अपनी होती, जो किसानोंकी जरूरतोंका ध्यान रखती और विदेशी प्रतिद्वन्द्वितासे उनकी रक्षा करने का निश्चय रखती, तो हमें इस प्रत्यक्ष त्यागकी जरूरत न पड़ती। पर राष्ट्रीय सरकारके अभावमें वही काम जो राष्ट्रीय सरकार कर सकती है, मध्यवर्गके लोगोंके कुछ समयके लिए थोड़ा-सा त्याग करने से हो सकता है।

शक्तिके अपव्ययका तो सवाल ही नहीं है। आचार्य राय पहले गरीब बहनोंको मुफ्तमें अन्न बाँटा करते थे। अब वे चरखेके रूपमें उन्हें एक प्रतिष्ठित पेशा देकर कुछ अंशोंमें या सर्वांशमें स्वावलम्बी बना रहे हैं। क्या यह शक्तिका अपव्यय है? भीख माँगने या भूखों मरनेके अलावा उनके पास दूसरा कोई काम करनेको नहीं था। क्या नवयुवकोंका गाँवोंमें जाना, उनकी जरूरतें मालूम करना, उनके दुःखसे दु:खी होना और उनकी सहायता करना शक्तिका अपव्यय है? क्या हजारों खातेपीते नवयुवकों और नवयुवतियोंका करोड़ों अध-पेट रहनेवाले दरिद्र लोगोंका खयाल रखना और निष्ठापूर्वक उनके लिए आधा घंटा चरखा कातना शक्तिका अपव्यय