पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इन सब बातोंका आप यह अर्थ न करें कि उनके या किसीके सब कार्योंको में पसंद करता हुं।

जड़-चेतन गुण-दोषमय, विश्व कीन्ह करतार।

संत हंस गुण गहहि पय, परिहरि वारि विकार।

आपका,
मोहनदास गांधी


मूल पत्र (सी० डब्ल्यू० ६०३०) से।
सौजन्य: घनश्यामदास बिड़ला


१७. पत्र: घनश्यामदास बिड़लाको

श्रावण कृष्ण ८ [२२ अगस्त, १९२४]

[१]

भाई घनश्यामदासजी,

पं० सुंदरलालजी मुझको यहाँ मीले हैं और आपके पत्रके बारेमें मुझको पूछते हैं। मैंने कहा आपका पत्र मुझको मीला था और मैंने ऊत्तर भी दे दीया था। सुंदरलालजी कहते हैं आपको हरदवार जानेतक मेरा ऊत्तर नहिं मीला था [इसलिए] और दूसरा चाहते हैं। मैं आपको सहायके बारे में कुछ लीखना नहिं चाहता हुं। सुंदरलालजीको सहाय देना न देना इस बारेमें यदि आप किसीकी सलाह लेना चाहें तो जमनालालकी सलाह ले लें। सुंदरलालजी कहते हैं, वह आपकी स्वतंत्र सहाय चाहते हैं और मैं सिर्फ आपको उनके कार्य के बारे में लिखुं। मैं अवश्य इतना कह सकता हुं कि सुंदरलालजी देशप्रेमी है असहयोगी है उत्साही हैं और कार्य करनेकी शक्ति अच्छी रखते हैं। यूवक वर्गपर उनका प्रभाव है। स्वभावमें बहोत स्वतंत्र हैं।

आपको मैंने अमदाबाद छोड़ने के समय तार भेज दीया था। मैं आज आश्रम जाता हुं। अब तक तो कुछ यहां नहिं हो सका है। दोनों पक्ष मेरी सलाहपर विचार कर रहे हैं।

आपका,
मोहनदास गांधी

मूल पत्र (सी० डब्ल्यू० ६०३१) से।

सौजन्य: घनश्यामदास बिड़ला

  1. १. गांधीजी दिल्ली से अहमदाबादके लिए २२ अगस्तको रवाना हुए थे।