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२०. पत्र: भवानीदयालको

ट्रेनमें,
श्रावण कृष्ण ९ [२३ अगस्त, १९२४][१]

भाईश्री भवानीदयाल,

तुमारे खतका उत्तर आज हि दे सकता हुं। क्षमा मागनेकी कुछ आवश्यकता नहिं। तुम अब द० आ० की लड़तको ज्यादा समझते हो यह बात सन्तोषजनक है। मुझे एक क्षणकी भी फुरसद नहिं है। इतना हि लेख भेजता हुं। मैं देखता हुं की उन्नतिके लीये तपश्चर्यासे अधिक शक्तिप्रद कोई दूसरी चीज नहिं है।

मोहनदास गांधी

श्रीयुत भवानीदयाल
पो० ओ०--जेकोब्स
नेटाल
दक्षिण आफ्रिका

मूल पत्र (सी० डब्ल्यू० ६०३२) से।

सौजन्य: विष्णुदयाल

२१. पत्र: अब्बास तैयबजीको

२३ अगस्त, १९२४

भाई साहब,

भुर्र ...।[२]

आपका पत्र पाकर बड़ी प्रसन्नता हुई। जब आपको चरखा चलानेकी ज्यादा आदत हो जायेगी तब आपको इतनी दिक्कत नहीं होगी। आप उस ओर देखें ही नहीं।

आपने मुस्लिम छात्रावासके लिए बहुत अच्छी रकम जमा की है।

श्रीमती अब्बासको और लड़कियोंको--सभीको--मेरा वन्देमातरम् अथवा सलाम, जो भी वे चाहें, कहें।

आपका,
मोहनदास गांधी

गुजराती पत्र (एस० एन० ९५४८) की फोटो-नकलसे।

  1. १. डाककी मुहरसे।
  2. २. गांधीजी और तैयबजी एक-दूसरेका अभिवादन इसी प्रकार किया करते थे।