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पत्र: च० राजगोपालाचारीको

तो अभ्याससे जाग्रत होती है। वह मनुष्य-मात्रमें स्वभावतः जाग्रत नहीं होती। इस अभ्यासके लिए बहुत पवित्र वातावरणकी जरूरत रहती है, सतत प्रयत्नकी जरूरत है। यह अत्यन्त नाजुक चीज है। बालकोंमें अन्तरात्माकी पुकार-जैसी कोई चीज नहीं होती। जो लोग जंगली माने जाते है उनमें अन्तरात्माकी पुकार नहीं होती। अन्तरात्माकी पुकार क्या चीज है? परिपक्व बुद्धि द्वारा हमारे अन्तरतममें उत्पन्न प्रतिध्वनि। अतएव यदि हर शख्स अन्तरात्माकी पुकारका दावा करे तो वह हास्यजनक होगा।

ऐसा होते हए भी यदि सब लोग उसका दावा करते हैं तो उससे परेशान होनेकी जरूरत नहीं। जो अधर्म अन्तरात्माकी पुकारके नामपर किया जाता है वह ज्यादा दिन नहीं टिक सकता। फिर वे लोग जो अन्तरात्माकी पुकारका बहाना लेकर काम करते हैं, कष्ट-सहनके लिए तैयार नहीं होते। उनका रोजगार दो दिन चलकर अवश्य ही बन्द हो जायेगा। अतः भले ही सैकड़ों लोग ऐसा दावा करते रहें उससे संसारकी हानि न होगी। हाँ, जो ऐसी सूक्ष्म वस्तुके साथ खिलवाड़ करेंगे उनके नाशकी सम्भावना जरूर है, औरोंके नाशकी नहीं। एक हदतक अखबार इसकी मिसाल हैं। कितने ही अखबार आज लोकसेवाके नामपर जहर-ही-जहर फैला रहे हैं। परन्तु यह रोजगार ज्यादा दिन नहीं चल पायेगा। लोग जरूर उससे ऊब जायेंगे। पंजाब इस बातमें महा अपराधी है। ताज्जुबकी बात तो यह है कि ऐसे अखबार भी चल पाते हैं। किन्तु लोग उन्हें उत्साहित क्यों करते हैं? जबतक सेठ-साहूकार होंगे तबतक चोर भूखों नहीं मर सकते। इसी प्रकार वहाँ जबतक लोगोंका एक हिस्सा जहरीले लेख पढ़ने के लिए तैयार रहेगा तबतक ऐसे अखबार जरूर चलेंगे। इसकी एकमात्र दवा शुद्ध लोकमतका निर्माण है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन,२४-८-१९२४

२५. पत्र: च० राजगोपालाचारीको

साबरमती
२४ अगस्त, १९२४

प्रिय राजगोपालाचारी,

आपने महादेवको जो पत्र लिखा था वह उसने मुझे दिखाया है। आप निराश न हों। श्रीमती नायडूका यह कहना कि मैं निराश हो चुका हूँ, एक लांछन है। यह सत्य है कि मैं अँधेरेमें रास्ता टटोल रहा हूँ। कुछ ऐसी चीजें हैं जिनके बारेमें मैं साफ-साफ कोई निर्णय नहीं दे पाता है, लेकिन यह तो सिर्फ इस बातकी स्वीकृति है कि हमारा जहाज समुद्र में अज्ञात पथपर चल रहा है।

याद रखिए कि हम सब सत्याग्रही हैं। हमारे सामने जो परिस्थिति है, उसपर हम पारिवारिक नियमको लागू करके देखें। मान लीजिए कि दो भाई उत्तराधिकारके