आरोपका खण्डन करते हुए कुछ ब्राह्मणोंने बहुत रोचक पत्र भेजे हैं। एक तो मैंने प्रकाशित भी कर दिया है।
आपका,
मो० क० गांधी
[पुनश्च:]
मेरा कार्यक्रम:
२९ अगस्तसे ३ सितम्बरतक बम्बईमें, ४थीको पूना, ५वींको बम्बई। फिर अनिश्चित, सम्भवतः ५ को ही बम्बईसे दिल्लीको रवाना हो जाऊँ।
[अंग्रेजीसे]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य: नारायण देसाई
२६. पत्र: सी० एफ० एन्ड्रयूजको
[२५ अगस्त, १९२४ के पूर्व][१]
परम प्रिय चार्ली,
रंगूनसे भेजा हुआ तुम्हारा तार[२]मिला। तुम्हारे भेजे सभी लेख मुझे मिल गये हैं।
मेरे खयालमें अफीमके बारेमें तुम मुझसे जो कुछ भी करनेकी अपेक्षा रख सकते हो, वह सब में कर चुका हूँ। कह नहीं सकता क्यों, किन्तु मुझे लगता है कि इस मामले में मैं जितना तुम्हारे लिए कर रहा हूँ उतना खुद इस समस्याके लिए नहीं कर रहा हूँ।
इस सवालपर तुम्हीं विचार करो कि तुम्हारे मलाया हो आनेके बाद भी क्या बनारसीदास और वझेको[३] वहाँ जानेकी जरूरत रह जाती है।
मैं आशा करता हूँ कि परिवर्तनसे तुम अवश्य लाभान्वित हुए होगे।
तुम्हें मेरे लिए परेशान होनेकी जरूरत नहीं। यहाँ तो सब-कुछ बिलकुल विपर्यस्त है, लेकिन मैं बहुत प्रसन्न हूँ और काफी अच्छी तरह हूँ।
सस्नेह,
तुम्हारा,
मोहन