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पत्र: अब्दुल मजीदको

कि यदि मैं नगरपालिकामें शामिल हो गया होता तो निश्चय ही अपनी योजनाओंको कार्यान्वित करा लेता? मैं कैसे कह सकता हूँ कि आपके पिछले सभापतियों या आपने ये सब बातें न सोची होंगी या अब न सोच रहे होंगे? मैं यह कहनेकी धृष्टता कैसे कर सकता हूँ कि इस बातके लिए अबतक किसी तरहकी कोशिश नहीं की गई? मैं तो सिर्फ इतना ही कह सकता हूँ कि जब-जब मैं अहमदाबादकी सड़कोंसे गुजरता हूँ तब-तब सड़कोंकी गन्दगी, धूल और दुर्दशा देखकर मेरा हृदय रो उठता है। ऐसी धनिक और महान् परम्परावाली नगरीमें इतनी गन्दगी, यह फाकेकशी क्योंकर रह सकती है?

पर मैं यह अभिमान नहीं कर सकता कि यदि मैं नगरपालिकामें शामिल हुआ होता तो मैं इन तमाम बुराइयोंको दूर कर देता। बहुत मुमकिन है वहाँ भी मुझे बही बदनामी नसीब होती, जो कि दूसरे क्षेत्रोंमें हो रही है। शायद ईश्वरने मेरे वहाँ न जानेमें कुछ भलाई ही सोची हो। परन्तु फिर भी आज मेरे माथेपर यह कलंक तो लगा ही हुआ है कि मैं इस नगरकी कुछ भी सेवा न कर सका और तिसपर भी आज यह अभिनन्दन-पत्र ग्रहण कर रहा हूँ, जिसके मैं सर्वथा अयोग्य हूँ। अतः परमात्मासे मेरी प्रार्थना है कि वह सिर्फ मेरे शुभ हेतुओंपर ही ध्यान रखे और मेरी त्रुटियोंके लिए मुझे क्षमा करे। आप सज्जनोंसे भी मै प्रार्थना करता हूँ कि कृपया मुझे क्षमा कीजिए और आज आदर्श नगरके स्वप्नका जो वर्णन मैंने आपके सम्मख किया है उसे याद रखिए। मैं फिर एक बार आपको धन्यवाद देता हूँ।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २८-८-१९२४

३०. पत्र: अब्दुल मजीदको

२७ अगस्त, १९२४

भाई अब्दुल मजीद,[१]

आपका खत मुझे मिला है। आपका अहसान मानता हूँ। आप मुझे याद हैं।

आपका,
गांधी

उर्दू पत्र (जी० एन० ६२१३) की फोटो-नकलसे।

  1. १. राष्ट्रीय विश्वविद्यालय, अलीगढ़के उप-कुलपति।